The company snatched the employment of women, women reached the company gate, case of MSP Steel Company Jamgaon
रायगढ़। महिला सशक्तिकरण के नारे अक्सर विभिन्न मंचों पर गूंजते हैं, लेकिन वास्तविकता में इन नारों की चमक कहीं खो जाती है। हाल ही में एमएसपी स्टील कंपनी, जामगांव में सैकड़ों महिलाओं को बेरोजगार कर दिया गया, जो इस विरोधाभास का ज्वलंत उदाहरण है। एक तरफ जहां सरकार और विभिन्न संगठन महिला सशक्तिकरण के बड़े-बड़े वादे करते हैं, वहीं दूसरी ओर इन महिलाओं को बेरोजगार करने से उनके परिवारों पर संकट मंडराने लगा है। अब जरूरत है कि समाज और शासन महिलाओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझे और उनके अधिकारों की रक्षा करे, ताकि महिला सशक्तिकरण के नारे केवल मंचों तक सीमित न रह जाएं, बल्कि हर महिला के जीवन में वास्तविक बदलाव ला सकें।
बेरोजगारी की मार झेल रही महिलाएं
एमएसपी स्टील कंपनी द्वारा अचानक लिए गए इस निर्णय से उन सैकड़ों महिलाओं के जीवन में उथल-पुथल मच गई है, जो अपने परिवार का भरण-पोषण करती थीं। यह नौकरी उनके जीवनयापन का मुख्य साधन थी, और अब यह सुरक्षा छिन जाने से महिलाएं आर्थिक संकट का सामना कर रही हैं। बेरोजगारी का दंश झेल रही ये महिलाएं अपने भविष्य को लेकर गहरी अनिश्चितता का सामना कर रही हैं, क्योंकि उनके परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।
अधिकारों का हनन और धरना प्रदर्शन
महिलाओं का कहना है कि उन्हें बिना किसी ठोस कारण के नौकरी से निकाला गया है। उनकी रोजी-रोटी छिन जाने के बाद, वे एमएसपी स्टील कंपनी के गेट के सामने धरना प्रदर्शन कर रही हैं। यह प्रदर्शन सिर्फ नौकरी की बहाली के लिए नहीं, बल्कि उनके अधिकारों के लिए भी है। इन महिलाओं का संघर्ष उस सामाजिक न्याय के लिए है, जो उन्हें एक कर्मचारी और एक महिला के रूप में मिलना चाहिए।
सरकार और प्रशासन की चुप्पी
जब महिला सशक्तिकरण के नारे सरकारी मंचों से गूंजते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि हर महिला के जीवन में क्रांति आ रही है। लेकिन जब ऐसी घटनाएं होती हैं, तो इन नारों की सच्चाई पर सवाल खड़े हो जाते हैं। एमएसपी स्टील कंपनी में नौकरी से निकाली गई महिलाओं की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है, न ही प्रशासन और न ही जनप्रतिनिधि। प्रशासन, जो महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा का दावा करता है, इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। जनप्रतिनिधि, जो हर चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे करते हैं, वे भी इस मुद्दे पर कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
महिला सशक्तिकरण: एक छलावा?
महिला सशक्तिकरण के नारों का मतलब क्या है? क्या ये सिर्फ चुनावी मुद्दे बनकर रह गए हैं, जिन्हें वोट बटोरने के लिए इस्तेमाल किया जाता है? या फिर यह वास्तव में महिलाओं की स्थिति को सुधारने का एक प्रयास है? अगर यह केवल नारा बनकर रह गया है, तो यह समाज और शासन की महिलाओं के प्रति प्रतिबद्धता पर एक बड़ा सवाल है।
समाज और शासन की जिम्मेदारी
महिलाओं को काम से निकाला जाना केवल आर्थिक संकट नहीं है, बल्कि यह उनकी आत्मनिर्भरता और गरिमा का भी उल्लंघन है। वे महिलाएं, जो अपने परिवारों के लिए मेहनत करती हैं, आज अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। यह स्थिति महिलाओं के लिए एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक संकट का प्रतीक है। उनके रोजगार से उनके परिवारों की स्थिति प्रभावित हो रही है, और उनकी आत्मनिर्भरता पर भी गहरा असर पड़ रहा है।