The flames spread for several kilometers, more than 500 people died, date 24 April, 1837, city Surat;
सूरत , इस शहर से जो भी मुखातिब होता है वह यहां की स्वच्छता, बड़ी-बड़ी इमारतों और ऊंचे-ऊंचे फ्लाईओवर का मुरीद हो जाता है. पिछले कुछ सालों में इस शहर में तेजी से प्रगति हुई है. साफ पानी से लेकर, लोकल ट्रांसपोर्ट, नागरिक सुरक्षा तक सब कुछ बड़ा चाक-चौबंद है.
उस वक्त ज्यादातर घरों में लकड़ी के तख्ते और लकड़ी की छतें हुआ करती थी. ऐसे में उस पारसी के घर से आग की लपटे पड़ोसी घर में फैल गई और देखते ही देखते उस इलाके की ज्यादातर घरों को आग ने अपनी चपेट में ले लिया. पूरे एक दिन तक जलने के बाद 26 अप्रैल की सुबह जैसे तैसे इसे बुझाया गया. इस घटना ने शहर के लगभग तीन-चौथाई भाग, 93⁄4 मील के दायरे में घरों को जला कर राख कर दिया था. उस भीषण आग में 500 से अधिक लोगों के मरने की आशंका जताई गई थी, हालांकि मौत का सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं हो पाया. लेकिन इस अग्निकांड में कुल 9,373 घर नष्ट हो गये. जिसमें से 6,250 घर शहर में और 3,123 घर उपनगरों में थे.
कैसे हुआ हादसा?
बताया जाता है कि 24 अप्रैल, 1837 की शाम पांच बजे सूरत के मछली पीठ इलाके में एक पारसी घर की सूखी लकड़ियों पर उबलता हुआ पिच यानी टार गिर गया था. जिससे वहां आग लग गई. पड़ोसियों ने आग बुझाने के लिए अपने कुओं से पानी का उपयोग करने से इनकार कर दिया.
उस वक्त ज्यादातर घरों में लकड़ी के तख्ते और लकड़ी की छतें हुआ करती थी. ऐसे में उस पारसी के घर से आग की लपटे पड़ोसी घर में फैल गई और देखते ही देखते उस इलाके की ज्यादातर घरों को आग ने अपनी चपेट में ले लिया.
उत्तर से तेज हवा के कारण कुछ ही घंटो में ये आग तीन मील के क्षेत्र में फैल गई. यह घटना इतनी भयानक थी कि अंधेरा होते होते आग की लपटें और धुएं को बीस से तीस मील की दूरी से भी देखा जा सकता था.
इस घटना के अगले दिन यानी 25 अप्रैल को, दक्षिण-पश्चिम से आने वाली हवा के कारण आग का फैलाव और भी ज्यादा बढ़ गया. इस दिन दोपहर करीब दो बजे आग अपने चरम पर थी.
पूरे एक दिन तक जलने के बाद 26 अप्रैल की सुबह जैसे तैसे इसे बुझाया गया. इस घटना ने शहर के लगभग तीन-चौथाई भाग, 93⁄4 मील के दायरे में घरों को जला कर राख कर दिया था.
500 से ज्यादा लोगों की हुई थी मौत
उस भीषण आग में 500 से अधिक लोगों के मरने की आशंका जताई गई थी, हालांकि मौत का सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं हो पाया. लेकिन इस अग्निकांड में कुल 9,373 घर नष्ट हो गये. जिसमें से 6,250 घर शहर में और 3,123 घर उपनगरों में थे.
ब्रिटिश सरकार ने उस वक्त इस घटना से पीड़ित लोगों को मुआवजे के तौर पर ₹50,000 की रकम दी थी, जबकि कई अलग अलग दानदाताओं ने बॉम्बे में 1,25,000 रुपये इकट्ठा किया था.
आग लगने के बाद बाढ़ का प्रकोप
ये साल सूरत के लोगों के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं था. एक तो आग ने लगभग आधे शहर को जलाकर राख कर दिया था. वहीं इस घटना के कुछ ही महीनों बाद यानी अगस्त 1837 में सूरत भारी बाढ़ से प्रभावित हुआ. इन आपदाओं के कारण पारसी , जैन और हिंदू व्यापारी बंबई चले गए. बाद में, बॉम्बे सूरत को पीछे छोड़कर भारत के पश्चिमी तट का प्रमुख बंदरगाह बन गया.
साल 2019 में भी लग चुकी है भीष्ण आग
साल 2019 के मई महीने में सूरत के तक्षशिला कॉम्प्लेक्स के एक कोचिंग सेंटर में भीषण आग लग गई थी. इस आग ने 21 जिंदगियां एक पल में खत्म कर दी. दरअसल इस हादसे में कोचिंग में पढ़ रहे 20 बच्चे और एक महिला टीचर की मौत हो गई थी. इस हादसे से सिर्फ सूरत ही नहीं बल्कि पूरा गुजरात और पूरा देश इस हादसे से दहल गया है.
कैसे हुआ था ये हादसा
दरअसल सूरत के जिस कॉम्प्लेक्स में आग लगी थी वहां के चौथे माले पर कोचिंग क्लास चल रही थी. ये आग दोपहर करीब 3.30 बजे लगी थी. उस वक्त कोचिंग में 40 बच्चे पढ़ाई कर रहे थे.
इस पूरे मामले की जांच से पता चला की आग लगने की वजह शॉर्ट सर्किट थी. शॉर्ट सर्किट के कारण पहले आग बैनर में लगी फिर बिल्डिंग में फैल गई और आग ने विकराल रूप ले लिया.
आग फैली तो चौथी मंजिल से कूदे बच्चे
उस वक्त कोचिंग में पढ़ रहे 40 बच्चों ने जैसे ही आग फैलती देखी, वह घबराहट में खुद को बचाने लिए वहां से भागने की कोशिश करने लगें. लेकिन तब तक आग ने इतना विकराल रूप ले लिया था कि बच्चों को वहां से निकलने का रास्ता नहीं मिला.
जिसके बाद अपनी जान बचाने के लिए कई बच्चों ने चौथी मंजिल से छलांग लगा दी थी. उस दौरान सोशल मीडिया पर भी इस भयानक हादसे का वीडियो वायरल हो रहा था. जिसमें देखा गया था कि बच्चे चौथी मंजिल के बाहर खिड़की, बालकनी से लटके हुए थे.
हालांकि मौत ने यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा. दरअसल चौथा मंजिल से कूदने के कारण वह नीचे सड़क पर गिर गए. बाद में अस्पताल ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई.
फायर ब्रिगेड सर्विस पूरी तरह हो गई था फेल
उस वक्त घटनास्थल पर मौजूद तमाम चश्मदीदों और वीडियो के मुताबिक, इस हादसे के तुरंत बाद फायर ब्रिगेड को बुलाया गया था लेकिन उनकी टीम भी बच्चों को बचा नहीं पाई. घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीदों ने कहा कि फायर ब्रिगेड के पास ना तो जाल था और न ही बड़ी सीढ़ियां.
उन्होंने बताया कि कई बच्चों ने सीढ़ियों को पकड़ने की कोशिश भी की थी, लेकिन इस कोशिश में वह ऊपर से नीचे आ गिरे. इस हादसे के बाद बदइंतजामी को देखते हुए गुजरात सरकार पर भी कई सवाल खड़े हो गए थे.