Rudraksha originated from the tears of Lord Shiva,,,, Pandit Sri Sri Dharcharya
प्रमोद अवस्थी मस्तूरी
मस्तूरी में नवयुवक दुर्गोंत्सव एवं दशहरा समिति के तत्वाधान में लगातार दूसरे वर्ष पर दुर्गा चौक के प्रांगण में रैतापरा कबीर धाम के कथा वाचक श्री श्री धरा चार्य ने शिव महापुराण कथा के दौरान विघेस्वर संहिता कथा के दौरान रुद्राक्ष की उत्पत्ति के वर्णन करते हुए श्रोताओं को बताए की सनातन धर्म में एक रुद्राक्ष का प्रयोग भगवान शिव के अंश के रूप में किया जाता है रुद्राक्ष का महत्व इसलिए भी अधिक माना जाता है क्योंकि रुद्राक्ष का जन्म भगवान शिव के अस्श्रुओ से हुआ था रुद्राक्ष की और अनेक महिमा बताएं। तथा कथा के दौरान श्री ब्रह्मा श्री विष्णु जी के युद्ध के बारे में बताए की श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी के पास आए। उस समय श्री विष्णु जी लक्ष्मी जी सहित शेष शैय्या पर सोए हुए थे। साथ में अनुचर भी बैठे थे। श्री ब्रह्मा जी ने श्री विष्णु जी से कहा बेटा, उठ देख तेरा बाप आया हूँ। मैं तेरा प्रभु हूँ। इस पर विष्णु जी ने कहा आओ, बैठो मैं तुम्हारा पिता हूँ। तेरा मुख टेढ़ा क्यों हो गया। ब्रह्मा जी ने कहा – हे पुत्र अब तुझे अभिमान हो गया है, मैं तेरा संरक्षक ही नहीं हूँ। परंतु समस्त जगत् का पिता हूँ। श्री विष्णु जी ने कहा तू अपना बड़प्पन क्या दिखाता है ? सर्व जगत् तो मुझमें निवास करता है। तू मेरी नाभि कमल से उत्पन्न हुआ और मुझ से ही ऐसी बातें कर रहा है। इतना कह कर दोनों प्रभु आपस में हथियारों से लड़ने लगे। एक-दूसरे के वक्षस्थल पर आघात किए। यह देखकर सदाशिव (काल रूपी ब्रह्म) ने एक तेजोमय लिंग उन दोनों के मध्य खड़ा कर दिया, तब उनका युद्ध समाप्त हुआ। (यह उपरोक्त बाते शिव महापुराण कथा के दौरान पंडित श्री श्री धरा चार्य जी ने कही। कथा के दौरान मुख्य यजमान के साथ समिति के सदस्यों तथा भारी संख्या में शिवभक्त गण उपस्थित हो कर कथा का श्रवण कर रहे थे।