Home Blog हानिकारक गाजर घास को समूल नष्ट करने कृषकों को किया गया जागरूक

हानिकारक गाजर घास को समूल नष्ट करने कृषकों को किया गया जागरूक

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Farmers were made aware to completely eradicate the harmful carrot grass

उत्तर बस्तर कांकेर, 22 अगस्त 2024/ गाजर घास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह का आयोजन 16 अगस्त से 22 अगस्त तक कृषि विज्ञान केन्द्र कांकेर एवं अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना खरपतवार प्रबंधन के तत्वावधान में किया गया। इसके तहत गाजरघास उन्मूलन हेतु ग्राम पुसवाड़ा एवं सिंगारभाट में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नितीश तिवारी ने गाजर घास के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि गाजरघास का प्रकोप पिछले कुछ वर्षों से सभी प्रकार की खाद्यान्न फसलों, सब्जियां एवं उद्यानों में भी बढ़ता जा रहा है। गाजरघास का पौधा 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा एक वर्ष में इसकी 3-4 पीढ़िया पूरी होती जाती है।
कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बीरबल साहू ने बताया कि वर्षा ऋतु में गाजरघास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाना चाहिए व अकृषित क्षेत्रों में शाकनाशी रसायन जैसे ग्लायफोसेट 1.5-2.0 प्रतिशत या मेट्रीब्यूजिन 0.3-0.5 प्रतिशत घोल का फूल आने के पहले छिड़काव करने से गाजरघास नष्ट हो जाती है। गाजरघास का एक पौधा 10,000 से 25,000 अत्यंत सूक्ष्म बीज पैदा कर सकता है एवं पूरे वर्ष भर उगता एवं फलता-फूलता रहता है।
उप संचालक कृषि श्री जितेन्द्र कोमरा ने कृषकों को विभागीय योजनाओं एवं समसमायिक जानकारी प्रदान की तथा गाजरघास को समूल नष्ट करने के लिए कृषकों को जागरूक होने आह्वान किया। वैज्ञानिक डॉ. सी. एल. ठाकुर ने गाजरघास के दुष्प्रभाव के बारे में बताया कि इसके सम्पर्क में आने से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग जैसे एक्जिमा, एलर्जी, बुखार एवं दमा आदि बीमारियां होती हैं। अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य की मृत्यु तक हो जाती है तथा पशुओं के लिए भी यह खरपतवार अत्यधिक विषाक्त होता है। गाजरघास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियां खत्म होने लगती है, जैव विविधता के लिये गाजरघास एक बहुत बड़ा खतरा बनता जा रही है। इसके कारण फसलों की उत्पादकता बहुत कम हो जाती है। कार्यक्रम में गाजरघास के जैविक नियंत्रण हेतु इसको खाने वाले कीट जायगोर्ग्रामा एवं बायक्लोराइटा को ग्राम पुसवाड़ा में छोड़ा गया।

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