SC: Supreme Court bans the electoral bond scheme, says it is unconstitutional, every donation is not for self-interest, know the important things about the Supreme Court’s decision.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार की राजनीतिक दलों को चंदा देने के तरीके चुनावी बॉन्ड को लेकर आज एक बड़ा दिन है। सुप्रीम कोर्ट इसकी वैद्यता को लेकर फैसला सुनाएगा। चुनावी बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने इस मामले में 2 नवंबर 2023 को सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्रीय चुनाव आयोग को योजना के तहत बेचे गए चुनावी बॉन्ड के संबंध में 30 सितंबर, 2023 तक डेटा जमा करने को कहा था।
चुनावी बॉन्ड के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी 2024) फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए तत्काल प्रभाव से इस पर रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि यह स्कीम RTI का उल्लंघन है. इतना ही नहीं उच्चतम अदालत ने एसबीआई से 6 मार्च तक चुनावी बॉन्ड की जानकारी देने के लिए कहा है.
सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड की वैधता पर सवाल उठाते हुए कुल चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं. कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में इस पर सुनवाई की थी और नवंबर में फैसला सुरक्षित रख लिया था. गुरुवार को चुनावी बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, बेंच का फैसला एकमत है. हालांकि, इस मामले में दो फैसले हैं, लेकिन निष्कर्ष एक है.
चुनावी बॉन्ड को लेेकर सुप्रीम कोर्ट आज यानी 15 फरवरी को अपना फैसला सुनातेे हुए कहा है, ‘चुनावी बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक, हर चंदा हित साधने के लिए नहीं’. देखा जाए तो येे पूरा मामला इलेक्टोरल बॉन्ड सेे जुड़़ा है. जो सरकार द्वारा 2 जनवरी 2018 में पेश किया गया था. यदि आप नहीं जानतेे हैं कि चुनावी बॉन्ड है क्या तो चलिए आज जान लेते हैं.
गुप्त होती है दानकर्ता की पहचान
चुनावी बांड की खास बात ये है कि ये किसी भी पार्टी को दान देने वाले दानकर्ता का नाम गुप्त रखता है. यानी इसके जरिए किसी भी दानकर्ता की पहचान उजागर नहीं होती. हालांकि सरकार और बैंकों द्वारा दान देने वाले की वैधता को सुनिश्चित करने के लिए और ऑडिटिंग के लिए इसका रिकॉर्ड अपनेे पास रखते हैं.
हम सरकार की दलीलों से सहमत नहीं- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार ने इस योजना से काले धन पर रोक की दलील दी थी. लेकिन इस दलील से लोगों के जानने के अधिकार पर असर नहीं पड़ता. यह योजना RTI का उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा, सरकार ने दानदाताओं की गोपनीयता रखना जरूरी बताया. लेकिन हम इससे सहमत नहीं हैं.
कोर्ट ने कहा, चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19 1(a) के तहत हासिल जानने के मौलिक अधिकार का हनन करती है. हालांकि, हर चंदा सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए नहीं होता. राजनीतिक लगाव के चलते भी लोग चंदा देते हैं. इसको सार्वजनिक करना सही नहीं होगा. इसलिए छोटे चंदे की जानकारी सार्वजनिक करना गलत होगा. किसी व्यक्ति का राजनीतिक झुकाव निजता के अधिकार के तहत आता है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
– चुनावी बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक.
– चुनावी बॉन्ड स्कीम RTI का उल्लंघन है.
– इनकम टैक्स एक्ट में 2017 में किया गया बदलाव (बड़े चंदे को भी गोपनीय रखना) असंवैधानिक है.
– जनप्रतिनिधित्व कानून में 2017 में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है.
– कंपनी एक्ट में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है.
– लेन-देन के उद्देश्य से दिए गए चंदे की जानकारी भी इन संशोधनों के चलते छिपती है.
– SBI सभी पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को दे.
– चुनाव आयोग 13 मार्च तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे.
– अभी जो बॉन्ड कैश नहीं हुए राजनीतिक दल उसे बैंक को वापस करे.
जानिए क्या थी चुनावी बॉन्ड योजना?
केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में चुनावी बॉन्ड की घोषणा की। इसे फिर 2018 में लागू किया गया। अब हर तिमाही एसबीआई 10 दिन के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करता है। ऐसा बताया जाता है बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। फिर चाहे वह कोई व्यक्ति हो, संस्था हो और फिर कंपनी हो। इसके माध्यम से अपनी पसंदीदा पार्टी को चंदा दिया जा सकता है। चुनावी बॉन्ड को वही राजनीतिक दल ले सकते हैं जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं। इसके साथ ही चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिये डाले गए वोटों में से कम-से-कम एक