From car thief to station master and then became a judge… his exploits will surprise you; after becoming a judge, bail was given to 2000, death of the country’s ‘Charles Sobhraj’
‘सुपर नटवरलाल’ और ‘इंडियन चार्ल्स शोभराज’ के नाम से कुख्यात धनीराम मित्तल की 85 साल की उम्र में हार्ट अटैक से मौत हो गई. धनीराम मित्तल को भारत के सबसे विद्वान और बुद्धिमान अपराधियों के रूप में जाना जाता था. कानून में स्नातक की डिग्री लेने और हैंडराइटिंग एक्सपर्ट एवं ग्राफोलॉजिस्ट होने के बावजूद उसने चोरी के जरिये जिंदगी गुजारने का रास्ता चुना.
धनीराम का जन्म हरियाणा के भिवानी में 1939 को हुआ था. माना जाता है कि उसने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, चंडीगढ़ और पंजाब जैसे विभिन्न राज्यों से 1000 से अधिक कारें चुराई हैं. वह इतना शातिर था कि उसने खास तौर से दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और आसपास के इलाकों में दिन के उजाले में इन चोरियों को अंजाम दिया.
फर्जी दस्तावेजों से रेलवे में हासिल की नौकरी
वह किसी भी राइटिंग की हूबहू नकल उतराने का मास्टर माना जाता था. पुलिस के मुताबिक, धनीराम पर जालसाजी के 150 केस दर्ज थे. उसने वकालत की डिग्री हासिल की थी और अपने मुकदमों की खुद ही पैरवी करता था. उसने फर्जी दस्तावेजों के जरिये रेलवे में नौकरी भी हासिल कर ली थी और वर्ष 1968 से 74 के बीच स्टेशन मास्टर के पद पर काम किया. हद तो तब हो गई जब वह फर्जी चिट्ठी के सहारे खुद ही जज बन बैठा और 2270 आरोपियों को जमानत दे दी.
धनीराम के खिलाफ जालसाजी के 150 मामले
पुलिस के मुताबिक धनीराम पर जालसाजी के 150 केस दर्ज थे। उसे हूबहू लिखावट का मास्टर माना जाता है। एलएलबी पास ठग खुद ही अपने मुकदमों की पैरवी करता था। दिल्ली में मित्तल के खिलाफ सबसे अधिक एसीपी राजपाल डबास ने कार्रवाई की। वे पहले एसआई और फिर इंस्पेक्टर बने थे। राजपाल की तैनाती पीसीआर में थी। कार चोरी के काफी मामलों में उन्होंने मित्तल को अरेस्ट किया था। हाल में धनीराम बुराड़ी इलाके में रहता था। इससे पहले वह नरेला में रह रहा था। धनीराम का जन्म हरियाणा के भिवानी में 1939 को हुआ था।
अखबार में पढ़ी खबर, पहुंच गया कोर्ट
रोहतक कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद वह फर्जी दस्तावेजों के जरिए रेलवे में भर्ती हुआ था। 1968-74 तक बतौर स्टेशन मास्टर काम किया। 1964 में धनीराम को फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के आरोप में रोहतक आरटीओ ने गिरफ्तार किया था। 70 के दशक में धनीराम ने अखबार में झज्जर के एडिशनल जज के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश की खबर पढ़ी थी। इसके बाद कोर्ट परिसर जाकर जानकारी ली और एक लेटर टाइप कर सीलबंद लिफाफे में रख दिया था। इस पर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार की स्टैंप लगाई, साइन किए और विभागीय जांच वाले जज के नाम से इसे पोस्ट कर दिया था। लेटर में दो महीने की छुट्टी के फर्जी आदेशों को जज ने सही समझ लिया। वे छुट्टी पर चले गए।
अगले दिन कोर्ट में हरियाणा हाई कोर्ट के नाम से एक लिफाफा आता है। जिसमें विभागीय जांच वाले जज के छुट्टी पर होने के कारण कोर्ट का काम न रुके। इसलिए दो महीने नए जज काम देखेंगे। तय डेट को धनीराम ही जज की वेशभूषा में कोर्ट आ गया। कोर्ट स्टाफ उसको सही मान बैठा और चैंबर दे दिया। 40 दिन में नकली जज ने 2740 आरोपियों को बेल दे दी। लेकिन किसी संगीन मामले में आरोपी को बेल नहीं दी। 40 दिन में धनीराम ने हजारों फैसले भी सुनाए।
फर्जी चिट्ठी लिखकर खुद बन बैठा जज
यह 70 के दशक की बात है, धनी राम ने एक अखबार में झज्जर के एडिशनल जज के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश की खबर पढ़ी. इसके बाद उसने कोर्ट परिसर जाकर जानकारी ली और एक चिट्ठी टाइप कर सीलबंद लिफाफे में वहां रख दिया. उसने इस चिट्ठी पर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार की फर्जी स्टैंप लगाई, साइन किए और विभागीय जांच वाले जज के नाम से इसे पोस्ट कर दिया. इस लेटर में उस जज को दो महीने की छुट्टी भेजने का आदेश था. इस फर्जी चिट्ठी और उस जज ने सही समझ लिया और छुट्टी पर चले गए.
माना जाता है कि धनी राम मित्तल ने फर्जी जज बनकर अपने खिलाफ केस की खुद ही सुनवाई की और खुद को बरी भी कर दिया. इससे पहले कि अधिकारी समझ पाते कि क्या हो रहा है, मित्तल पहले ही भाग चुका था. इसके बाद जिन अपराधियों को उसने रिहा किया या जमानत दी थी, उन्हें फिर से खोजा गया और जेल में डाल दिया गया.