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जानें इस खास दिन का इतिहास…मजदूरों के लिए क्यों तय किया गया खास दिन? 1 मई को क्यों मनाया जाता है मजदूर दिवस,

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Know the history of this special day… Why was this special day fixed for laborers? Why is Labor Day celebrated on 1st May?

दुनिया में हर दिन कोई ना कोई खास दिन होता है. हर दिन किसी न किसी को समर्पित होता है. जिस तरह टीचर्स डे, फादर्स डे, वूमेंस डे मनाया जाता है. उसी तरह आज भी एक खास दिन मनाया जा रहा है. आज यानी 1 मई को पूरी दुनिया मजदूर दिवस यानी लेबर डे मना रही है.
आज का दिन दुनिया में सभी कामगारों के लिए मनाया जाता है. दुनिया के बहुत से देशों में इस दिन छुट्टी का प्रावधान होता है. आखिर कब से मनाया जा रहा है इंटरनेशनल लेबर डे. क्या है इसको मनाने के पीछे की कहानी. चलिए जानते हैं विस्तार से.

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क्यों मनाया जाता है लेबर डे?

कोई दिन जब सेलिब्रेट किया जाता है. तो उसके पीछे कोई ना कोई वजह जरुर रही होती है. मजदूर दिवस यानी लेबर डे को मनाने के पीछे भी एक बड़ी वजह है. बात है साल 1886 के दशक की उस वक्त अमेरिका में मजदूरों का आंदोलन चल रहा था. मजदूरों ने अपने अधिकारों के लिए हड़ताल करना शुरू कर दिया था. इसका कारण था मजदूरी का समय यानी सामान्य समझने की भाषा में कहें तो मजदूरों को एक दिन में कितना काम करना है. यानी उनके वर्किंग अवर्स कितने हो.

यहां आंदोलन इसलिए हुआ था क्योंकि उस समय मजदूरों को दिन में 15 घंटे काम करना पड़ता था. निश्चित वर्किंग अवर्स की मांग के लिए मजदूरों ने आंदोलन शुरू किया. जिसमें हर आंदोलन की तरह पुलिस ने दखल दिया. और मजदूरों पर गोलीबारी की. जिसमें कई मजदूर की जान गई. तो वहीं बड़ी मात्रा में मजदूर घायल भी हुए. इस आंदोलन से हुआ यह कि मजदूरी की अवधि या यानी वर्किंग अवर्स को 8 घंटे फिक्स कर दिया गया.
साल 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन हुआ था. जिसमें एक मजदूर दिन में कितना काम करेगा. यह तय किया गया था. इस सम्मेलन के बाद से मजदूरी की अवधि का यह कानून पूरे अमेरिका में लागू हो गया. और फिर बाकी देशों में भी मजदूरी की अवधि 8 घंटे तय कर दी गई. इसी कारण 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया गया.

क्या है मई दिवस या मजदूर दिवस का इतिहास

मजदूर दिवस या मई दिवस को मनाने की परंपरा 137 साल से चली आ रही है। लेकिन इसके क्या मायने हैं? दरअसल मजदूर दिवस की जड़े अमेरिका में 1886 में हुए एक श्रमिक आंदोलन से जुड़ी हैं। आज जो रोजाना काम करने के 8 घंटे निर्धारित हैं और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी का अधिकार है, वो सब इसी आंदोलन की देन है। 1880 का दशक अमेरिका समेत विभिन्न पश्चिमी देशों में औद्योगीकरण का दौर था। इस दौरान मजदूरों से 15-15 घंटे काम लिया जाता है।

सूर्योदय से सूर्यास्त तक उन्हें काम करने के लिए मजबूर किया जाता था। अमेरिका और कनाडा की ट्रेड यूनियनों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन ने तय किया कि मजदूर 1 मई, 1886 के बाद रोजाना 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे। जब वो दिन आया तो अमेरिका के अलग-अलग शहरों में लाखों श्रमिक शोषण के खिलाफ हड़ताल पर चले गए। यहीं से बड़े श्रमिक आंदोलन की शुरुआत हुई। पूरे अमेरिका में श्रमिक सड़कों पर उतर आए थे। इस दौरान कुछ मजदूरों पर पुलिस ने गोली चला दी थी जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
इसके बाद 1889 में जब पेरिस में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस हुई तो 1 मई को मजदूरों को समर्पित करने का फैसला किया। इस तरह धीरे-धीरे पूरी दुनिया में 1 मई को मजदूर दिवस या कामगार दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। आज अगर कामकाजी वर्ग के लिए दिन में काम के 8 घंटे तय हैं तो वह अमेरिका में हुए इसी आंदोलन की ही देन है।

भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत

भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। यही वह मौका था जब पहली बार लाल रंग झंडा मजदूर दिवस के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। यह भारत में मजदूर आंदोलन की एक शुरुआत थी जिसका नेतृत्व वामपंथी व सोशलिस्ट पार्टियां कर रही थीं। दुनियाभर में मजदूर संगठित होकर अपने साथ हो रहे अत्याचारों व शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।

सुबह से शाम तक मजदूरों से लिया जाता था काम

वास्तव में पश्चिमी देशों में जब औद्योगिकरण का दौर शुरू हुआ तो और मजदूरों से सूर्य उदय होने से लेकर सूर्यास्त तक काम कराया जाने लगा. उनसे 15-15 घंटे से भी ज्यादा समय तक काम लिया जा रहा था. इससे लगातार असंतोष पैदा हो रहा था. इसी के कारण अक्तूबर 1884 में कनाडा और अमेरिका की ट्रेड यूनियनों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन आगे आई. उसने तय किया कि 1 मई 1886 के बाद मजदूर रोज 8 घंटे से अधिक काम नहीं करेंगे. आखिरकार वह तारीख भी आ गई यानी 1 मई 1886 और उस दिन अमेरिका के अलग-अलग शहरों के लाखों मजदूर हड़ताल पर चले गए.

शिकागो की हड़ताल हिंसक झड़प में बदल गई थी

अमेरिका का शिकागो शहर इन विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में था. वहां दो दिनों तक शांतिप्रिय तरीके से हड़ताल चलती रही. एक मई से शुरू हुई हजारों मजदूरों की हड़ताल तीन मई की शाम को अचानक हिंसक हो गई. प्रदर्शनकारियों में से किसी ने पुलिस पर हमला कर दिया और उस पर बम फेंके. मैकॉर्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कंपनी के बाहर भड़की इस हिंसा के जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की. इसमें चार मजदूरों की जान चली गई. यही नहीं, अगले दिन भी पुलिस और मजदूरों में हिंसक झड़प हुई. इसमें सात पुलिसवालों के साथ कुल 12 लोगों की मौत हो गई

कई देशों में चलता रहा मजदूरों का आंदोलन

इसके बावजूद अपनी मांगों को लेकर मजदूर 1889 से 1890 के बीच अलग-अलग देशों में प्रदर्शन करते रहे. एक मई 1890 को ब्रिटेन के हाइड पार्क में तो तीन लाख मजदूर सड़क पर उतर आए. इनकी भी मांग वही थी कि मजदूरों से 8 घंटे काम लिया जाए. फिर समय के साथ यह दिन श्रमिकों के अधिकारों की तरफ ध्यान आकर्षित कराने का एक मौका बनता चला गया और आंदोलन चलता रहा.

पेरिस कॉन्फ्रेंस में एक मई को मजदूरों को समर्पित करने का फैसला

फिर साल 1889 में पेरिस में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया तो उसी में तय किया गया कि एक मई को मजदूरों को समर्पित कर दिया जाए. इसके बाद धीरे-धीरे पूरी दुनिया में एक मई को मजदूर दिवस या फिर कामगार दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. इस आंदोलन का ही नतीजा था कि आज दुनिया भर में कर्मचारियों के लिए काम के अधिकतम आठ घंटे निर्धारित हैं. यही नहीं, सप्ताह में एक दिन की छुट्टी की शुरुआत भी शिकागो आंदोलन की ही देन है. इसको देखते हुए विश्व के कई देशों में तो एक मई को राष्ट्रीय अवकाश रखा जाता है.

भारत में पहली बार 1923 में मनाया गया था मई दिवस

भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत की बात करें, तो साल 1923 में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान ने मद्रास (अब चेन्नई) ने इसका आगाज किया था. वामपंथी और सोशलिस्ट पार्टियों की अगुवाई में मद्रास में एक मई 1923 को पहली बार लाल रंग के झंडे का इस्तेमाल किया गया, जिससे मजदूरों के संघर्ष और एकजुटता को दर्शाया जा सके. उसी साल से भारत में भी एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाने लगा और यहां भी कई राज्यों में एक मई को सार्वजनिक छुट्टी रहती है.

इन बड़े देशों में भी मनाया जाता है लेबर डे

दुनिया के हर एक देश के लिए उसके श्रमिकों का महत्व होता है. बता दें अमेरिका में लेबर डे मनाने की शुरूआत के बाद से सिर्फ भारत में ही लेबर डे नहीं मनाया जाता. बल्कि दुनिया के और भी कई बड़े देशों में लेबर डे मनाया जाता है. जिनमें कनाडा,जापान, जर्मनी, रूस जैसे देश भी शामिल हैं. जहां हर साल 1 मई को लेबर डे सेलिब्रेट किया जाता है.

हर साल थीम होती है अलग

मजदूर दिवस यानी लेबर डे के दिन हर साल अलग थीम होती है. पिछले साल यानी साल 2023 में सकारात्मक सुरक्षा और स्वास्थ्य संस्कृति का निर्माण में भागीदारी थी. तो वहीं इस साल यानी साल 2024 में जलवायु परिवर्तन के बीच कार्यस्थल सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना थीम है.

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