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राम मंदिर तो मिल गया फिर क्या चाहते थे लोग जिस अयोध्या से जीतने चले थे पूरा चुनाव वहीं क्यों हार गई भाजपा,

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We got the Ram temple, then what did the people want, why did the BJP lose the entire election from Ayodhya where they went to win?

भाजपा उम्मीदवार प्रताप चंद्र सारंगी ने बालासोर लोकसभा सीट पर 1 लाख से अधिक मतों से जीत हासिल की है. भगवा पार्टी के उम्मीदवार कांग्रेस उम्मीदवार दिव्यांशु बुद्धिराजा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे. ओडिशा की बालासेर लोकसभा सीट पर 1 जून को लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें और अंतिम चरण में मतदान हुआ. 2019 के लोकसभा चुनाव में मौजूदा भाजपा सांसद प्रताप चंद्र सारंगी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, बीजद उम्मीदवार रवींद्र कुमार जेना के खिलाफ 12,956 मतों के अंतर से सीट जीती थी. प्रताप चंद्र सारंगी मिट्टी के घर में रहने वाले एक अनोखे राजनेता हैं. जो अपनी सादगी के लिए मशहूर है. पहले वे पहले गांवों में रामायण सुनाते थे.
प्रताप चंद्र सारंगी संसद में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान संसद में अपने भाषण से काफी चर्चा में आए थे. उन्होंने रामायण के प्रसंगों को सुनाकर जनता में अपनी लोकप्रियता बढ़ाई थी. प्रताप चंद्र सारंगी कुंवारे हैं, जो छप्पर वाले घर में रहते हैं, साइकिल चलाते हैं और एक साधारण जीवन जीते हैं. सारंगी आरएसएस की पृष्ठभूमि से हैं. वे 2004 और 2009 में नीलगिरि से दो बार विधायक बने. उन्होंने बालासोर निर्वाचन क्षेत्र से 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन हार गए थे. खुद को मोदी का सिपाही कहने वाले सारंगी अपनी जीत का श्रेय अपनी प्रतिबद्धता, ईमानदारी और सादगी को देते हैं.

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उन्हें प्यार से ‘नाना’ कहा जाता है और बड़े भाई की तरह उनका सम्मान किया जाता है. वे बजरंग दल के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. अस्सी के दशक में उन्होंने राज्य के अंदरूनी इलाकों में कई एकल विद्यालय (एकल स्थानीय शिक्षक वाले गांव के स्कूल) शुरू किए थे. ये एकल शिक्षक विद्यालय, जो कक्षा तीन या पांच तक के छात्रों को लेते हैं और संबंधित गांवों के शिक्षित युवाओं द्वारा चलाए जाते हैं. शिक्षकों का वेतन गांव से चंदे के जरिये वसूला जाता है. सारंगी अपनी मां के निधन के बाद से अकेले रहते हैं, लेकिन उनके साधारण घर में हमेशा समर्थकों की भीड़ लगी रहती है.
हमेशा सफेद सूती कुर्ता-पायजामा पहने नजर आने वाले सारंगी का प्रचार करने का तरीका भी काफी अलग था. जहां उनके प्रतिद्वंद्वियों के पास निर्वाचन क्षेत्र में घूमने के लिए एसयूवी का बेड़ा था और उन्होंने पेशेवर अभियान प्रबंधकों और चुनाव प्रबंधन एजेंसियों को काम पर रखा था, वहीं सारंगी ने ऑटो-रिक्शा रैलियां निकालीं. चुनावी जीत के बाद भी सारंगी मिट्टी और बांस के घर में रहते हैं. उन्होंने अपना जीवन सामाजिक कार्यों और गरीबों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया है और एक साधु की तरह रहते हैं.

‘राम मंदिर निर्माण को वोट में नहीं बदल पाए’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के काउंटिंग एजेंट तिवारी कहते हैं, ‘हमने वास्तव में कड़ी मेहनत की, हमने इसके लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन राम मंदिर निर्माण वोट में तब्दील नहीं हुआ.’ मतगणना केंद्र से करीब एक किलोमीटर दूर भाजपा कार्यालय में नतीजों की तस्वीर जैसे-जैसे साफ हो रही थी, वैसे-वैसे सन्नाटा नजर आ रहा था. अयोध्या में राजकीय इंटर कॉलेज, जो फैजाबाद लोकसभा सीट के लिए मतगणना केंद्र के रूप में कार्य करता है, से लगभग एक किलोमीटर दूर, लक्ष्मीकांत तिवारी अयोध्या में लगभग सुनसान भाजपा चुनाव कार्यालय में बैठे हुए थे.

राम मंदिर के उद्घाटन के चार महीने बाद ही हार गई बीजेपी

राम मंदिर के अभिषेक के बमुश्किल चार महीने बाद ही फैजाबाद लोकसभा चुनाव में बीजेपी हार गई, जिसका हिस्सा अयोध्या भी है. पूरे चुनाव प्रचार में राम मंदिर का जिक्र किया गया. यूपी के नतीजों ने उन सभी एग्जिट पोल को भी खारिज कर दिया, जिसमें एनडीए को 71-73 सीटें मिलती हुई नजर आ रही थीं. इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा 370 सीटों के अपने लक्ष्य से काफी पीछे रह गई, अयोध्या में हार विशेष रूप से गंभीर थी।

जमीन अधिग्रहण से स्थानीय लोग नाराज थे

लक्ष्मीकांत तिवारी ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “स्थानीय मुद्दे थे, जो केंद्र में थे. अयोध्या के कई गांव के लोग मंदिर और एयरपोर्ट के आसपास हो रहे जमीन अधिग्रहण से नाराज थे. साथ ही, बसपा के वोट सपा को स्थानांतरित हो गए क्योंकि अवधेश प्रसाद एक दलित नेता हैं.’ नौ बार के विधायक और सपा के प्रमुख दलित चेहरों में से एक अवधेश प्रसाद ने लल्लू सिंह को 54,567 वोटों के अंतर से हराया, जो तीसरी बार फिर से निर्वाचित होने की कोशिश कर रहे थे.

‘संविधान बदलने के लिए 400 सीटों की जरूरत’

चुनावों से पहले, निवर्तमान सांसद लल्लू सिंह उन भाजपा नेताओं में से थे, जिन्होंने कहा था कि पार्टी को ‘संविधान बदलने’ के लिए 400 सीटों की आवश्यकता है. मतगणना केंद्र के बाहर इंतजार कर रहे मित्रसेनपुर गांव निवासी 27 वर्षीय विजय यादव ने कहा, ‘सांसद को ऐसा नहीं कहना चाहिए था. संविधान उन प्रमुख मुद्दों में से एक था, जिसे अवधेश प्रसाद (विजेता सपा उम्मीदवार) ने उठाया और अपनी रैलियों में ले गए.’

‘लोगों ने बदलाव के लिए मतदान किया’

विजय यादव ने कहा, ‘पेपर लीक एक और बड़ा कारण था. मैं भी इसका शिकार हूं. क्योंकि मेरे पास नौकरी नहीं है, इसलिए मैंने अपने पिता के साथ हमारे खेतों में काम करना शुरू कर दिया है. लोगों ने यहां बदलाव के लिए मतदान किया क्योंकि हमारे सांसद ने राम मंदिर और राम पथ (अयोध्या की ओर जाने वाली चार सड़कों में से एक) पर अपनी विफलताओं को छिपाने के अलावा यहां कोई काम नहीं किया.’

सरकार के वादों से लोग थे नाराज?

भाजपा कार्यालय के बाहर, अरविंद तिवारी, जो खुद को “भाजपा समर्थक” के रूप में बताते हैं, उन्होंने कहा कि राम मंदिर की भव्यता ने बाहरी लोगों को प्रभावित किया होगा, लेकिन शहर के निवासी इस असुविधा से नाखुश थे. उन्होंने कहा, ‘सच्चाई यह है कि बहुत कम अयोध्यावासी मंदिर में जाते हैं, यहां अधिकांश भक्त बाहरी हैं. राम हमारे आराध्य हैं (हम राम की पूजा करते हैं), लेकिन अगर आप हमारी आजीविका छीन लेंगे तो हम कैसे जीवित रहेंगे? राम पथ के निर्माण के दौरान स्थानीय लोगों से वादा किया गया था कि उन्हें दुकानें आवंटित की जाएंगी. ऐसा नहीं हुआ.’

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