These 3 new laws will be implemented in the country from July 1, now will you get immediate justice? Understand what will change in 10 points
लखनऊ। राजनीतिक दबाव के चलते अब तक कई संगीन मुकदमे भी कोर्ट से वापस हो जाते थे, लेकिन एक जुलाई से तीन नए कानून (भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 व भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023) लागू होने के बाद यह संभव नहीं होगा। अब न्यायालय में लंबित आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए पीड़ित को कोर्ट में अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलेगा। न्यायालय पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना मुकदमा वापस लेने की सहमति नहीं देगा।
नए कानूनों में ऐसे कई प्रविधान किए गए हैं, जो न्याय की अवधारणा को मजबूत करते हैं। समयबद्ध न्याय के लिए पुलिस व कोर्ट के लिए सीमाएं भी निर्धारित की गई हैं। अंग्रेजों के बनाए कानून खत्म हुए तो पहली बार छोटे अपराधों में सजा के तौर सामुदायिक सेवा का भी प्रविधान किया गया है। पुलिस विवेचना में अब तकनीक का उपयोग अधिक से अधिक होगा। इसके लिए डिजिटल साक्ष्यों को पारंपरिक साक्ष्यों के रूप में मान्यता दी गई है। ई-एफआइआर व जीरो एफआइआर की भी व्यवस्था की गई है। आतंकवाद व संगठित अपराध जैसे नए विषय भी जोड़े गए हैं।
डीजीपी मुख्यालय में गुरुवार नए कानूनों के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई। सूचना प्रसारण मंत्रालय व उप्र पुलिस के इस वार्तालाप कार्यक्रम में डीजीपी प्रशांत कुमार ने कहा कि नए कानूनों की मूल भावना तकनीक का अधिक से अधिक प्रयोग कर यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी स्थित में वादी (शिकायतकर्ता) का उत्पीडन न हो तथा कोई भी निर्दोष व्यक्ति दंडित न हो। विवेचक व इस प्रक्रिया से जुड़े किसी व्यक्ति के विवेक के बजाए किसी निष्कर्म पर पहुंचने की प्रक्रिया तकनीक पर आधारित हो।
इसके लिए फारेंसिक साक्ष्यों का उपयोग भी अधिक से अधिक सुनिश्चित कराया जाएगा। कहा, पुलिस के अलावा अभियोजन, कारागार, तकनीकी सेवाएं व प्रशिक्षण के सभी पुलिस अधिकारियों व कर्मियों का प्रशिक्षण कराया गया है। डा.भीमराव अंबेडकर पुलिस अकादमी, मुरादाबाद नए आपराधिक कानून-2023 का विवरण पर एक पाकेट बुक प्रकाशित कर रही है, जिसमें कानूनों का तुलनात्मक विवरण होगा। नए कानून में वीडियो कान्फ्रेंसिंग से गवाही कराने के भी व्यापक प्रबंध किए जा रहे हैं।
मंत्रालयों के विशेषज्ञों की अहम भूमिका
सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के न्याय और गृह विभाग, कारागारों, अभियोजन अधिकारियों, कानून के छात्रों, शिक्षा विभाग, महिला और बाल विकास विभाग, सहकारिता और ग्रामीण विकास विभाग के साथ पुलिस रिकॉर्ड से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों को इन संहिताओं और कानून की जटिलताओं से निपटने के तकनीकी स्रोतों की जानकारी दी गई। इस कार्य में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, संचार और पंचायती राज मंत्रालयों के विशेषज्ञों ने भी अपनी भूमिका निभाई।
फोटोग्राफी से लेकर सबूत जुटाने की दी गई ट्रेनिंग
अधिकारियों को अपराध स्थल की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी, साक्ष्य जुटाने के अचूक तरीकों, बयान दर्ज करने में तकनीक का प्रयोग और मानवाधिकारों का ध्यान रखने का प्रशिक्षण दिया गया। एनआईसी ने ई-कोर्ट्स के लिए न्याय श्रुति, ई-साक्ष्य और ई-समन जैसे मोबाइल ऐप विकसित किए हैं, जिनके इस्तेमाल की भी ट्रेनिंग दी गई। इन सबके लिए 250 से ज्यादा सत्र वेबिनार और सेमिनार के जरिए आयोजित किए गए, जिसमें 50,000 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित किया गया।
17 बार वार्तालाप सीरीज का आयोजन
कानून और संहिताओं से जुड़े प्रशिक्षण कोर्स में लगभग ढाई लाख अधिकारियों ने नामांकन कराया है। आम नागरिकों को नए कानूनों के प्रति जागरूक बनाने के लिए आयोजित वेबिनार और सेमिनार में 40 लाख से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़े। पीआईबी और सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने देश के नागरिकों के लिए 17 बार वार्तालाप सीरीज का आयोजन किया।
नए कानूनों के साथ आएंगी नई चुनौतियां
तीनों नए कानूनों का असर एक जुलाई के बाद से दिखना शुरू होगा। हालांकि, कई दिग्गज न्यायविदों ने इन संहिताओं में मौजूद खामियों के प्रति सरकार और समाज को आगाह किया है। सुप्रीम कोर्ट के वकील समर सिंह के अनुसार, न्यायविदों के सुझावों और अपत्तियों पर अब तक कोई ठोस समाधान नहीं हुआ है। नए कानूनों के साथ नई चुनौतियां भी सामने आएंगी।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
तीन नए आपराधिक कानून लागू होने से तीन दिन पहले मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट विशेषज्ञों की समिति का गठन कर इन तीनों विधि संहिताओं का विस्तृत अध्ययन कराए ताकि इनमें मौजूद दोषों का समुचित परिष्कार हो सके। तब तक इनके क्रियान्वयन पर रोक लगाने की गुहार लगाई गई है। पिछले साल 25 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों से पारित इन तीनों संहिताओं के विधेयक पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए थे। लेकिन सरकार ने इनको एक जुलाई से लागू करने की अधिसूचना जारी की थी। सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका अंजली पटेल और छाया मिश्रा ने दायर की है।