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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ AIMPLB की बैठक आज, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का आदेश आने पर धार्मिक संगठनों में हलचल क्यों?

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AIMPLB meeting today against the decision of the Supreme Court, why is there a stir in religious organizations when the order came to give alimony to divorced Muslim women?

नई दिल्ली। (Muslim Personal Law Board Meeting Today Hindi) सर्वोच्च न्यायालय के मुस्लिम तालकशुदा महिलाओं को भी गुजारा भत्ता देने के फैसले के विरोध में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक आज रविवार को है। यह बैठक दिल्ली में हो रही है, जिसमें देशभर के 50 से अधिक धार्मिक गुरु और कानून के जानकार शामिल होंगे।

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बोर्ड से जुड़े लोगों ने बताया कि इस बैठक में तय किया जाएगा की सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरोध में क्या रणनीति अपनानी है । वैसे माना यह जा रहा है कि इस फैसले के विरोध में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा कानूनी रास्ता अख्तियार किया जा सकता है और इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ही चुनौती दी जा सकती है। बड़े बेंच में सुनवाई की मांग की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी CrPC के सेक्शन 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता लेने का हकदार ठहराया है. इस फैसले के बाद मुस्लिम संगठनों में हलचल मच गई है. जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने आज यानी 11 जुलाई को लीगल टीम की बैठक बुलाई है, जो कोर्ट के इस फैसला का अध्ययन कर आगे की रूपरेखा तैयार करेगी. इसके अलावा भी कई मुस्लिम मौलवी और संगठनों से जुड़े लोगों ने इस पर अपनी राय जाहिर की है. कुछ का कहना है कि कोर्ट का ये फैसला शरिया कानून में दखल है और मर्दों के साथ नाइंसाफी है.बुलाई है, जो कोर्ट के इस फैसला का अध्ययन कर आगे की रूपरेखा तैयार करेगी. इसके अलावा भी कई मुस्लिम मौलवी और संगठनों से जुड़े लोगों ने इस पर अपनी राय जाहिर की है. कुछ का कहना है कि कोर्ट का ये फैसला शरिया कानून में दखल है और मर्दों के साथ नाइंसाफी है.

उम्मीद है कि जमीयत उलेमा ए हिंद आज मीटिंग के बाद कोर्ट के इस फैसले पर रिव्यू पिटीशन डाल सकती है.

ऐसा ही फैसला 1985 में शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था. लेकिन उस वक्त बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों की वजह से तत्कालीन राजीव सरकार ने ‘मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स एक्ट 1986’ लागू कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को डाइल्यूट कर दिया था. अब फिर सुप्रीम कोर्ट ने वैसा ही फैसला दोहराया है और फिर से देश में माहौल गरमा गया है.

“SC के फैसले से ऐतराज नहीं होना चाहिए”
देवबंद के मुफ्ती असद कासमी देवबंदी ने कहा यह तो हमारे इस्लाम मे शुरू से चला आ रहा है. निकाह के वक्त मेहर 5 आदमियों की मौजूदगी में तय होते हैं, कुछ लोग पहले दे देते हैं और कुछ लोग बाद में अता करते हैं. रहा तलाकशुदा का मामला तो कोर्ट के इस फैसले का हम एहतराम करते हैं. इसमें किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए.
AIMPLB ने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को भी झुकाया

पिछली बार जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi Government) के कार्यकाल में ऐसा ही फैसला आया था तब मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने ही विरोध की आवाज बुलंद कर राजीव गांधी सरकार को झुका दिया था। तब सरकार ने 1986 में संसद के जरिए कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। लेकिन आज वह स्थिति नहीं है। वर्तमान में नरेंद्र मोदी सरकार को महिलाओं के अधिकार को लेकर कई ऐतिहासिक फैसले लेते देखा गया है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस महत्वपूर्ण बैठक में तय होगा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता का अधिकार देने के मामले का विरोध कैसे होगा तय होगा। यह तय करते समय सरकार के रुख को भी ध्यान में रखा जाएगा। इस बैठक में जमीयत के मौलाना अरशद मदनी समेत देशभर के प्रमुख मुस्लिम धार्मिक संगठनों के प्रमुख शामिल होंगे।

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