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Chirag Paswan: छुआछूत, मंदिर और घोड़ी , SC/ST रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट पर भड़के चिराग

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Chirag Paswan: Untouchability, temple and mare, Chirag lashes out at Supreme Court on SC/ST reservation

पटना। चिराग पासवान ने रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जाहिर की है। चिराग पासवान ने कहा है कि लोजपा (रामविलास) इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने जा रही।
दलितों के साथ होने वाले भेदभाव के मामलों का हवाला देते हुए चिराग ने कहा कि आज भी दलितों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव होता है। आज भी दलित समाज से आने वाले युवाओं को घोड़ी पर चढ़ने से रोक दिया जाता है। मंदिरों में पूजा नहीं करने दी जाती है।
चिराग ने आगे कहा कि ऐसे कई बड़े नाम हैं, जो बड़े पदों पर हैं, लेकिन अगर वे मंदिर जाते हैं तो मंदिर को गंगाजल से धुलवाया जाता है।

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आरक्षण का आधार छुआछूत: चिराग

क्रीमी लेयर को आरक्षण के लाभ से वंचित करने के फैसले पर चिराग ने कहा कि अनुसूचित जातियों को मिलने वाले आरक्षण का आधार छुआछूत है न कि आर्थिक।
चिराग ने आगे कहा कि संविधान में आरक्षण का जो प्रावधान है, उसका आधार छुआछूत रहा है, ऐसे में इसमें क्रीमी लेयर का प्रावधान हो ही नहीं सकता है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला ?

सुप्रीम कोर्ट ने बीते गुरुवार को आरक्षण पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण को मंजूरी दे दी है। इस फैसले के बाद मौजूदा आरक्षण कोटे के अंदर भी कोटा बनाया जा सकेगा।
कोर्ट ने एससी, एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर करने की जरूरत पर भी बल दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एससी, एसटी को मिलने वाले आरक्षण में उसी वर्ग के आरक्षण का लाभ पाने से वंचित रह गए वर्गों को लाभ देने के लिए उप वर्गीकरण किया जा सकेगा।

उदाहरण के लिए एससी वर्ग की ऐसी जातियां जो ज्यादा पिछड़ी रह गई हैं और उन्हें आरक्षण का उचित लाभ अबतक नहीं मिल पाया है, उनका सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, उनको उप वर्गीकरण के जरिए उसी कोटे में प्राथमिकता दी जा सकती है ताकि उन तक लाभ पहुंचे और उनका उत्थान हो।

छुआछूत के बहाने एससी कोटे में उप-समूहों का विरोध?

चिराग पासवान ने कहा कि दलित समाज से आनेवाले युवा को ही घोड़ी पर चढ़ने से रोका जाता है। दलित समाज से आने वाले परिवार को मंदिर में प्रवेश करने से रोका जाता है। कई ऐसे उदाहरण हमलोगों के सामने है, जहां पर संपन्न लोग भी, जो कहीं न कहीं समाज में एक अच्छी पहचान बना चुके हैं, वो लोग भी जो दलित समाज से आते हैं, जब मंदिर में जाते हैं तो मंदिर धुलवाया जाता है। आज भी इस तरह के भेदभाद को प्रैक्टिस किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि जब भेदभाव छुआछुत के आधार पर हो रहा है। ये भेदभाव कहीं शिक्षा के आधार पर नहीं हो रहा है। ये भेदभाव कहीं आर्थिक दृष्टि से नहीं हो रहा है कि भाई आप आर्थिक तौर पर सक्षम हो गए तो अब कहीं भेदभाव नहीं होगा। कई ऐसे बड़े नाम भी हैं कि जो अगर किसी मंदिर में चले जाते हैं तो उसके बाद उस मंदिर को गंगाजल से धोया जाता है। ऐसे उदाहरण आज की तारीख में भी देखने को मिलते हैं। जब ये उदाहरण हैं तो ये दर्शाते हैं कि ये जो भेदभाव हो रहा है ये आपकी आर्थिक दृष्टि पर नहीं हो रहा है या आप कितने कामयाब हो गए हैं अपने क्षेत्र में उसको लेकर नहीं हो रहा है। ये इसलिए हो रहा है कि आज भी छुआछूत को मानने वाले लोग हैं। शेड्यूल कास्ट में उन्हीं जातियों को रखा गया जो छुआछूत का शिकार कहीं न कहीं कभी न कभी समय के किसी दौर पर रही है।

अनुसूचित जातियों में सबसे पिछड़ी जातियों को आरक्षण की कवायद

एक ऐतिहासिक फैसले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व के आधार पर अनुसूचित जातियों (एससी) के भीतर जातियों को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति दी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 15 फीसदी एससी कोटे का बड़ा हिस्सा पिछड़ों को मिले। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं।

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