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आदिवासी क्षेत्रों में काल्पनिक कथा व काल्पनिक पुस्तक की नहीं, संविधान कथा एवं संवैधानिक पुस्तिका की जरूरत है – राजकुमार रोत सांसद बाँसवाड़ा डूंगरपुर राजस्थान

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कांकेर,छत्तीसगढ़। आज दिनांक 29.09.2024 को छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में सांसद राजकुमार रोत का पारम्परिक रीति-रिवाजों से स्वागत किया। इस अवसर पर समुदाय के लोग अपनी विशिष्ट वेशभूषा में अपनी सांस्कृतिक पहचान को दर्शाने के लिए पहुंचे। आज यहां आयोजित हुए सम्मेलन में सांसद राजकुमार रोत के पहुंचने पर यहां छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे आदिवासी समुदायों ने सांसद रोत का अपने रीति-रिवाजों के अनुसार भव्य स्वागत किया। कार्यक्रम के आयोजन में सांसद रोत ने सभा को संबोधित किया। अपने संबोधन में कहा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी आदिवासी समुदाय अपने जल, जंगल, जमीन और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। एक तरफ देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, वहीं दूसरी और आदिवासी समाज को अब भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण समाज की एकजुटता की कमी और शिक्षा का अभाव रहा है। सांसद रोत ने यह भी कहा कि सरकारों ने आदिवासी समाज के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाने में कमी की, जिसके चलते उन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ा। साथ ही, समाज कई सामाजिक कुरीतियों में उलझा रहा, जिससे अपने हक और अधिकारों की लड़ाई में पीछे रह गया। इस दौरान उन्होंने आदिवासी समाज से आह्वान किया कि सामाजिक कुरीतियों से दूर रहकर एकजुट होकर समाज को आगे बढ़ाने का प्रयास करें, ताकि आने वाली पीढ़ी एक मजबूत और सशक्त समाज का निर्माण कर सके। साथ ही कहा कि बीजेपी ने वोट बैंक के लिये आदिवासी समुदाय की पूजा पद्दति को खत्म कर हिंदूकरण करने का काम कर रही है, आदिवासी क्षेत्र में अनेक काल्पनिक कथा एव काल्पनिक पुस्तकें वितरण कर आदिवासी समुदाय को मानसिक गुलाम बनाने का काम कर रही है, और आदिवासी को आदिवासी से धर्म के नाम पर लड़ाने का काम कर रही है, जिसका ताजा उदाहरण मणिपुर का है। आदिवासी समुदाय की पूजा पद्धति हिंदू ईसाई, मुस्लिम एवं सिख इन सभी धर्मों से बिलकुल अलग है, इन धर्मों का निर्माण हो नहीं हुआ, उससे पहले से आदिवासी समुदाय की अपनी व्यवस्था है, लेकिन आदिवासी समुदाय की अपनी धार्मिक सांस्कृतिक पहचान को ख़त्म करने का काम किया जा रहा है, लेकिन अब हम नहीं होने देंगे। NCRT एवं छत्तीसगढ़ पाठ्यक्रम पुस्तक में आदिवासी समुदाय के इतिहास एवं आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को कही जगह नहीं दी जा रही है। मैं छत्तीसगढ़ में आदिवासी पुरखों के इतिहास एवं संवैधानिक अधिकार को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने के लिये लोकसभा में आवाज उठाऊंगा। छत्तीसगढ़ में खनन के नाम पर पिछले 5 सालो में हजारो हेक्टेयर जमीन आदिवासियों से हड़पने का काम किया जिससे हजारो आदिवासी विस्थानप का शिकार हुए हैं। रोत ने बताया कि पूरे देश में पिछले 5 वर्ष में 18 हजार हेक्टेयर के आसपास वन भूमि को केंद्र सरकार ने प्राइवेट कंपनी को दे दी है। इसमें छत्तीसगढ़ की 2280 हेक्टेयर वन भूमि है, लेकिन दूसरी और गरीब आदिवासी आजादी पूर्व से वन भूमि पर बैठा है और वन को रक्षा करता आ रहा है, उसको पट्टा नहीं दे रहे है। साथ ही टाइगर प्रोजेक्ट के नाम लाखों आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहे है। छत्तीसगढ़ के नारायणपूरा में थल सेना का ट्रेनिंग रेंज बनाने के लिये 54000 हजार हेक्टेयर के करीब जमीन अवाप्ति करना प्रस्तावित है, इससे हजारों आदिवासी विस्थापित होंगे। इस जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ने की जरूरत है। रोत ने कहा कि सरकार कोई भी रही हो संविधान की 5वी अनुसूची में निहित अधिकारो को धरातल पर लागू करने में पीछे रही है। बिना ग्राम सभा की अनुमति से माइनिंग कंपनियों के लिये सरकार भूमि अवाप्ति का काम पर रही है। देश के 5वी एव 6वी अनुसूचित क्षेत्र में सरकार खुद संविधान विरोधी काम कर रही है। एक सुंदर छत्तीसगढ़ को देश दुनिया में नक्सलवाद के नाम से बदनाम करने का काम किया जा रहा है। सरकार का नक्सलवाद तो एक बहाना है, हकीकत तो आदिवासियों से जल जंगल जमीन छीनकर उद्योगपतियों को देना उनका मुख्य मकसद है। निर्दोष आदिवासियों को भी फर्जी नक्सली मुठभेड़ में मारा जा रहा है। इस तरह सांसद राजकुमार रोत ने इन समस्त मुद्दों पर चर्चा की। यह दौरा सांसद राजकुमार रोत के तीन दिवसीय छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र दौरे का हिस्सा है, जिसमें उन्होंने समाज की बेहतरी और एकजुटता पर विशेष जोर दिया है और छत्तीसगढ़ के आदिवासियो पर आने वाली हर विपदा में खड़े रहने के लिये आश्वस्त किया है।

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