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नवजात शिशु के जन्म के साथ पूंछ की दुर्लभ घटना: चमत्कार या चिकित्सा का कमाल देखे पूरी खबर….

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Rare occurrence of a tail at the birth of a newborn baby: Miracle or wonder of medicine, see full news…

मुंगेली जिला से हरजीत भास्कर की रिपोर्ट

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मुंगेली – जिले के लोरमी के 50 बिस्तर अस्पताल में हाल ही में एक दुर्लभ और चौंकाने वाली घटना सामने आई, जब एक नवजात शिशु के जन्म के साथ ही उसकी पीठ से जुड़ी पूंछ जैसी संरचना ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। यह असामान्यता, जिसे चिकित्सा विज्ञान में ‘जन्मजात कॉकसीज विसंगति’ (congenital coccygeal anomaly) के रूप में जाना जाता है, लोगों में जिज्ञासा और आश्चर्य का कारण बनी हुई है। इस अनोखी घटना ने अस्पताल के साथ-साथ पूरे इलाके में सनसनी फैला दी है। लोग इसे किसी चमत्कार या दैवीय संकेत के रूप में देखने लगे हैं, जबकि जानकार चिकित्सक इसे एक शारीरिक विकृति मानते हुए सामान्य चिकित्सा प्रक्रिया के तहत सुलझ जाने की बात कर रहे हैं। लोरमी के इस अस्पताल में जिस नवजात शिशु का जन्म हुआ, उसकी पीठ पर एक पूंछ जैसी संरचना जुड़ी हुई थी। यह देखकर डॉक्टर, नर्स, और परिवार के सदस्य सभी हैरान रह गए। ऐसी स्थिति बेहद दुर्लभ होती है और चिकित्सा जगत में इसे एक असामान्य शारीरिक विकृति के रूप में देखा जाता है। हालांकि, आम जनता के बीच इस घटना ने अलग-अलग धारणाओं को जन्म दिया है, जिसमें धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं की झलक देखने को मिल रही है। इस शिशु के जन्म के बाद से ही अस्पताल में लोगों की भीड़ जमा होने लगी है। कई लोग इसे चमत्कार मान रहे हैं और यह मानते हैं कि इस बच्चे में कोई विशेष शक्ति या ईश्वरीय संकेत हो सकता है। वहीं, कुछ लोग इसे एक दुर्लभ प्राकृतिक घटना मानकर देखने आ रहे हैं। इस असामान्यता के कारण स्थानीय सोशल मीडिया और अन्य जगहों से भी वायरल होने लगी हैं, जिससे मामला और अधिक चर्चा में आ गया है। वही डां व परिजनों के द्वारा नवजात शिशु को लड़की बता रहे हैं जिसका जन्म 13-10-2024 दिन -रविवार , जन्म- रात 3 बजके 2 मिनट, वजन – 3 किलो 200 gm , और यह बच्ची अपने माता-पिता का पहला संतान है वह इस बच्ची के माता का नाम आशा नवरंग, पिता का नाम – ओमप्रकाश नवरंग, ग्राम सिरसाहा, ब्लॉक तखतपुर, जिला बिलासपुर बताया जा रहा है

जानकार चिकित्सकीय दृष्टिकोण

अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टरों इस स्थिति का गहराई से अध्ययन कर सकते है और इसे चिकित्सा की दृष्टि से समझने की कोशिश की करेंगे। जानकार चिकित्सक के अनुसार, इस प्रकार की स्थिति को चिकित्सा विज्ञान में ‘जन्मजात कॉकसीज विसंगति’ कहा जाता है। यह एक प्रकार की शारीरिक विकृति होती है, जो भ्रूण के विकास के दौरान उत्पन्न होती है। गर्भावस्था के दौरान शरीर के विभिन्न अंगों का विकास एक निश्चित क्रम में होता है, और कुछ दुर्लभ मामलों में इस प्रकार की असामान्यताएं उत्पन्न हो सकती हैं। जानकारों का मानना है कि यह स्थिति जन्मजात होती है, और इसका कारण आमतौर पर जेनेटिक या विकास के दौरान हुए किसी दोष को माना जाता है। इस स्थिति में नवजात शिशु की पीठ के निचले हिस्से में एक पूंछ जैसी संरचना बन जाती है, जो कि कॉकसीज या टेलबोन से जुड़ी होती है। यह विकृति बेहद दुर्लभ होती है, और इसके मामले विश्वभर में गिने-चुने ही दर्ज किए गए हैं।

सर्जरी द्वारा इलाज संभव

जानकारों ने स्पष्ट किया है कि इस प्रकार की स्थिति का इलाज सर्जरी के माध्यम से किया जा सकता है। यह पूंछ जैसी संरचना एक तरह की त्वचा और मांसपेशी का ढांचा होता है, जिसे सर्जरी के द्वारा हटाया जा सकता है। जानकारों ने कहा कि इस नवजात शिशु का स्वास्थ्य ठीक है और यह पूंछ उसकी किसी भी शारीरिक गतिविधि को प्रभावित नहीं कर रही है। इसलिए, विशेषज्ञों की राय में इस स्थिति को जल्द ही सर्जरी के माध्यम से ठीक किया जा सकता है, जिससे शिशु सामान्य जीवन जी सकेगा।

अंधविश्वास और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

जैसे ही इस घटना की खबर फैली, स्थानीय समुदाय और आसपास के इलाकों में लोग इसे लेकर तरह-तरह की धारणाएं बनाने लगे। कई लोग इस नवजात शिशु को देखने के लिए अस्पताल आने लगे। कुछ लोग इसे चमत्कारिक घटना मानकर शिशु की पूजा-अर्चना की बातें करने लगे। वहीं, कुछ लोगों ने इसे धार्मिक ग्रंथों से जोड़ने का प्रयास किया और इसे किसी विशेष घटना का संकेत बताया। भारत जैसे देश में जहां धार्मिक मान्यताओं का विशेष महत्व है, इस प्रकार की घटनाओं को अक्सर अंधविश्वासों से जोड़कर देखा जाता है। लोगों में यह धारणा बन गई कि यह शिशु विशेष है और इसके जीवन में कुछ असाधारण घटित हो सकता है। अस्पताल में लगातार बढ़ती भीड़ और लोगों की धार्मिक मान्यताओं के चलते प्रशासन को स्थिति को संभालने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण

हालांकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह एक सामान्य जन्मजात विकृति है, जिसका समाधान चिकित्सा विज्ञान में मौजूद है। डॉक्टरों और विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की विकृतियां भ्रूण विकास के दौरान ही उत्पन्न होती हैं और इनका इलाज संभव है। विश्वभर में इस प्रकार की विकृतियों के कुछ ही मामले सामने आए हैं, और अधिकतर मामलों में सफलतापूर्वक सर्जरी कर विकृत अंग को हटा दिया जाता है।
सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस घटना ने यह स्पष्ट किया कि अंधविश्वास और विज्ञान के बीच का अंतर आज भी कई जगहों पर धुंधला है। लोगों को समझने की जरूरत है कि चिकित्सा विज्ञान ने इस प्रकार की असामान्यताओं का समाधान खोज लिया है और इसे किसी धार्मिक चमत्कार से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। साथ ही, समाज में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि इस प्रकार की घटनाओं को लेकर अंधविश्वास न फैलें और लोग वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं। लोरमी के इस अस्पताल में नवजात शिशु के जन्म के साथ आई इस दुर्लभ विकृति ने न केवल चिकित्सा विज्ञान के लिए एक नया केस प्रस्तुत किया है, बल्कि समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और धारणाओं को भी उजागर किया है। जहां एक ओर डॉक्टर इस स्थिति का इलाज करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, वहीं दूसरी ओर समाज में इसे लेकर फैली धार्मिक और सांस्कृतिक धारणाओं को संभालना एक चुनौती बन गई है। आवश्यकता है कि लोग इस घटना को एक सामान्य चिकित्सा स्थिति के रूप में समझें और इसे अंधविश्वास से दूर रखें। जानकार ने आश्वस्त किया है कि इस शिशु का इलाज संभव है और जल्द ही उसे सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार किया जा सकेगा। इस प्रकार की घटनाएं यह दिखाती हैं कि विज्ञान ने कितना विकास किया है और हमें इस पर भरोसा करना चाहिए, न कि अंधविश्वासों पर।

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