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अनैतिक आचरण के लिए संसद से निकाली गईं महुआ के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी बढ़ाया इंतजार, 3 जनवरी तक टली सुनवाई,जानें क्या बोले जज?

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Supreme Court also extended the wait for Mahua, who was expelled from Parliament for unethical conduct, hearing postponed till January 3, know what the judge said?

 

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लोकसभा से अपने निष्कासन को चुनौती देने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की नेता महुआ मोइत्रा की याचिका पर अब 3 जनवरी को सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मामला पेश होने पर इसे सुनवाई के लिए अगले साल 3 जनवरी तक के लिए टाल दिया। लोकसभा में आचार समिति की रिपोर्ट को मंजूर किए जाने के बाद बीते सोमवार को टीएमसी नेता को सदन से निकाल कर दिया गया। इसके विरोध में मोइत्रा ने शीर्ष अदालत का रुख किया है। इस रिपोर्ट में मोइत्रा को ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले में ‘अनैतिक एवं अशोभनीय आचरण’ का जिम्मेदार ठहराया गया था।

निशिकांत दुबे ने पक्षकार बनने की अपील की
झारखंड से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद निशिकांत दुबे ने इस मामले में पक्षकार बनाने का अनुरोध करते हुए अदालत का रुख किया है. दुबे की शिकायत के बाद ही मोइत्रा का लोकसभा से निष्कासन हुआ था. लोकसभा में आचार समिति की रिपोर्ट को मंजूर किए जाने के बाद सोमवार को टीएमसी नेता को निष्कासित कर दिया गया. इसके विरोध में मोइत्रा ने शीर्ष अदालत का रुख किया है. इस रिपोर्ट में मोइत्रा को ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले में ‘अनैतिक एवं अशोभनीय आचरण’ का जिम्मेदार ठहराया गया था.
फाइल पढ़ना चाहते हैं जज

मामले की सुनवाई शुरु होते ही न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने मोइत्रा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी को बताया कि उन्होंने मामले की फाइल नहीं देखी है और पीठ सर्दियों की छुट्टियों के बाद इस पर सुनवाई करना चाहती है जो 3 जनवरी को समाप्त होंगी। जस्टिस खन्ना ने मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से कहा, ‘मुझे सुबह ही फाइल मिली, उस पर नजर डालने का समय नहीं मिला। क्या हम इसे 3 या 4 जनवरी को रख सकते हैं? मैं इस पर गौर करना चाहता हूं।’

निशिकांत दुबे क्यों बनना चाह रहे हैं पक्षकार?
निशिकांत दुबे ने शीर्ष अदालत में दायर अर्जी में कहा है कि चूंकि तत्काल याचिका की वजह उनके (दुबे) द्वारा 15 अक्टूबर, 2023 को की गई शिकायत से उत्पन्न हुई है, इसलिए, यह उचित और न्याय के हित में है कि उनको एक आवश्यक पक्षकार के रूप में शामिल किया जाए. प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने बुधवार को मोइत्रा की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी की दलीलों पर संज्ञान लिया.

महुआ की दलील जानिए
संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 8 दिसंबर को हंगामेदार चर्चा के बाद लोकसभा में मोइत्रा के निष्कासन का प्रस्ताव पेश किया था जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। चर्चा में मोइत्रा को खुद का पक्ष रखने का मौका नहीं मिला था। मोइत्रा ने कहा कि आचार समिति ने हर नियम को तोड़ा है। 8 दिसंबर को संसद के बाहर बोलते हुए उन्होंने वापस लड़ने का वादा किया था। उन्होंने कहा था, ‘मैं 49 साल की हूं और अगले 30 सालों तक मैं आपसे संसद के अंदर और बाहर, गटर में और सड़कों पर लड़ूंगी… हम आपका अंत देखेंगे… यह आपके अंत की शुरुआत है… हम वापस आएंगे और आपका अंत देखेंगे।’

उन्होंने कहा, ‘जिनमें से किसी से भी मुझे अपना पक्ष रखने की अनुमति नहीं थी। दो प्राइवेट लोगों में से एक मेरा अलग हुआ साथी है, जिसने दुर्भावना के साथ समिति के सामने एक आम नागरिक होने का दिखावा किया था। इन दोनों गवाहियों का इस्तेमाल मुझे एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत ध्रुवों पर लटकाने के लिए किया गया है।’

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