हाई ब्लड प्रेशर को ऐसे ही नहीं साइलेंट किलर बोला जाता है, लेकिन समय के साथ-साथ हाई ब्लड प्रेशर शरीर के कामों में रुकावट कर सकता है, जिससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक से लेकर किडनी फेलियर तक कई गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ता है। हाई ब्लड प्रेशर बेहद गंभीर हो सकता है और इससे समय से पहले मौत भी हो सकती है। हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों में कई बार सालों तक कोई लक्षण नहीं दिखता है और यही वजह है कि ब्लड प्रेशर की नियमित जांच जरूरी है। सिरदर्द, सांस लेने में परेशानी, धुंधला दिखना, नाक से खून आना, चक्कर आना, चेस्ट पेन ब्लड प्रेशर के कुछ साफ लक्षण हैं। हालांकि, ब्लड प्रेशर का असर कभी-कभी सीधे तौर पर महसूस नहीं होता है, इसलिए इसके साइलेंट इफेक्ट को कम करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें, जैसे- ब्लड प्रेशर की जांच करना, दिल को हेल्दी रखने के लिए अच्छी लाइफस्टाइल अपनाना और समय-समय पर डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम : हाई ब्लड प्रेशर हार्ट पर अधिक प्रेशर डालता है, जिससे उसे ब्लड पंप करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। दिल की मसल्स समय के साथ-साथ मोटी हो जाती हैं और हार्ट फेलियर का जोखिम बढ़ता है। इसके अलावा लगातार दबाव ब्लड वेसल्स को नुकसान करने लगता है।
दिमाग की सेहत : सेरेब्रोवास्कुलर डिजीज में हाई ब्लड प्रेशर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर दिमाग में ब्लड वेसल्स को नुकसान करता है, जिससे स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है।
किडनी की समस्या : ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में किडनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालांकि, लगातार हाई ब्लड प्रेशर समय के साथ-साथ क्रोनिक किडनी डिजीज की वजह बन सकता है, जिससे अंगों के वेस्ट को फिल्टर करने और इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस बनाए रखने की कैपेसिटी कम हो जाती है।
आई साइट प्रॉब्लम : आंखें हमारी ओवरऑल हेल्थ के लिए एक जरूरी अंग हैं और हाई ब्लड प्रेशर होने से धुंधला दिख सकता है। हाई ब्लड प्रेशर आंखों में छोटी-छोटी ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुंचाता है, जिससे हाई ब्लड प्रेशर रेटिनोपैथी होती है। यह कंडीशन नजर से जुड़ी समस्याएं पैदा कर सकती है और अगर इलाज न किया जाए, तो परमानेंट देखने में परेशानी हो सकती है।
पेरिफेरल आर्टियल डिजीज : हाई ब्लड प्रेशर एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis) एक ऐसी स्थिति है, जहां प्लेक (plaque) के होने पर आर्टिरीज संकीर्ण और सख्त हो जाती हैं। यह न केवल कोरोनरी आर्टरी पर असर करती है, बल्कि अंगों की आर्टरी को भी प्रभावित करती हैं, जिससे पेरिफेरल आर्टियल डिजीज होती है। हाथ-पैरों में ब्लड का फ्लो कम होने से दर्द हो सकता है, घाव भरने में समय लग सकता है और संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।