Why is Bakrid celebrated, how did the sacrifice on Bakrid start? Know the exact date of Eid-ul-Adha
बकरीद, जिसे ईद-उल-अज़हा भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार हज की समाप्ति के बाद मनाया जाता है और इसे कुर्बानी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है। बकरीद इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने धू अल-हिज्जा के 10वें दिन मनाया जाता है।
कुर्बानी की शुरुआत कैसे हुई?
बकरीद पर कुर्बानी (बलिदान) की प्रथा का आरंभ इस्लाम धर्म में हजरत इब्राहीम (अब्राहम) की एक महान बलिदान कथा से होता है। कहानी के अनुसार, अल्लाह ने हजरत इब्राहीम की परीक्षा लेने के लिए उन्हें उनके सबसे प्रिय बेटे इस्माइल को कुर्बान करने का आदेश दिया। इब्राहीम ने अल्लाह के आदेश का पालन करने के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय लिया। लेकिन अल्लाह ने उनकी निष्ठा और समर्पण को देखकर इस्माइल को बचा लिया और उसकी जगह एक मेमने की कुर्बानी दी गई। इस घटना की याद में ही हर साल बकरीद पर मुसलमान जानवरों (जैसे बकरी, भेड़, गाय) की कुर्बानी करते हैं।
बकरीद की खासियत क्या है?
धार्मिक समर्पण और निष्ठा: बकरीद का त्योहार हजरत इब्राहीम की धार्मिक निष्ठा और अल्लाह के प्रति उनकी समर्पण की याद दिलाता है। यह त्याग और बलिदान की भावना को बढ़ावा देता है।
समुदाय की सेवा: कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है – एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है, दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों में बांटा जाता है, और तीसरा हिस्सा खुद के परिवार के लिए रखा जाता है। इस प्रकार, यह त्योहार सामाजिक समानता और भाईचारे का प्रतीक है।
धार्मिक प्रार्थना और एकता: बकरीद के दिन मुसलमान विशेष नमाज अदा करते हैं, जिसे ईद-उल-अज़हा की नमाज कहते हैं। यह सामूहिक प्रार्थना एकता और भाईचारे का प्रतीक है।
पवित्र यात्रा हज: बकरीद हज यात्रा के साथ भी जुड़ा हुआ है, जो इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों में से एक है। हज यात्रा के दौरान किए गए अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता है और यह मुस्लिम समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है।
बकरीद एक महत्वपूर्ण इस्लामी त्योहार है जो त्याग, निष्ठा, और समाज सेवा का प्रतीक है। हजरत इब्राहीम की कुर्बानी की कथा से प्रेरित होकर, यह त्योहार मुसलमानों को धार्मिकता, समर्पण, और सामाजिक समानता के महत्व की याद दिलाता है। इस दिन की गई कुर्बानी गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करती है और पूरे मुस्लिम समुदाय को एकता के बंधन में बांधती है।
भारत में कब मनेगी बकरीद
इस्लामिक कैलेंडर के 12वें और आखिरी महीने की दसवीं तारीख को बकरीद मनाई जाती है. इसे माह-ए-जिलहिज्जा कहा जाता है. 7 जून को माह-ए-जिलहिज्जा की शुरुआत हुई थी, क्योंकि इसी तारीख को धुल हिज्जा का चांद देखा गया था. ऐसे में माह-ए-जिलहिज्जा के दसवें दिन यानी सोमवार 17 जून 2024 को भारत में ईद उल अजहा यानी बकरीद होगी. भारत के साथ ही 17 जून को ही पाकिस्तान (Pakistan), मलेशिया, इंडोनेशिया, जापान, ब्रूनेई और होंगकोंड में भी बकरीद मनेगी.
वहीं सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत, ओमान, जोरडन, सीरिया और ईराक जैसे देशों में एक दिन पहले यानी 16 जून 2024 को ही बकरीद मनाया जाएगा.
बकरीद का महत्व
बकरीद का त्योहार मनाए जाने के पीछे पैगंबर हजरत इब्राहिम की कहानी जुड़ी है. जब अल्लाह ने सपने में उनसे उसकी सबसे प्यारी चीज मांगी तो उन्होंने अल्लाह को अपनी सबसे प्यारी चीज के रूप अपने बेटे को सौंपने का फैसला कर लिया. अपनी आंखों पर पट्टी लगाकर पैगंबर हजरत इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी दे दी. लेकिन जब आंखों से पट्टी हटाया तो बेटा सही सलामत था और कुर्बानी के स्थान पर बकरा था. इसलिए बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी देने का महत्व है.
बकरीद के दिन कुर्बानी दी जाती है. लोग नए कपड़े पहनते हैं, पकवान बनाए जाते हैं, मस्जिद में बकरीद की नमाज अदा की जाती है और घर पर रिश्तेदारों का आना-जाना होता है.
मुस्लिम समाज में दूसरा बड़ा पर्व
मुस्लिम समाज में ईद उल-अजहा यानि बकरीद दूसरा सबसे बड़ा पर्व है. इस्लाम धर्म से जुड़े लोग इस पर्व को हर साल रमजान खत्म होने के लगभग 70 दिन बाद मनाते हैं.बकरीद के पर्व को कुर्बानी के पर्व के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन लोग बकरे या अन्य किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं.लोगों के जेहन में अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर इस दिन बकरे की कुर्बानी क्यों दी जाती है और इसके पीछे की मान्यता क्या है? आइए जानते हैं कि आखिर कब कैसे शुरु हुई कुर्बानी की ये परंपरा और क्यों मनाया जाता है बकराईद का पर्व
जानें क्यों दी जाती है कुर्बानी ?
इस्लामिक मान्यता के अनुसार ईद उल-अजहा यानि बकरीद पर कुर्बानी की शुरुआत हजरत इब्राहीम के समय हुई थी, जिन्हें अल्लाह का पला पैगंबर माना जाता है. मान्यता है कि एक बार फरिश्तों के कहने पर अल्लाह ने उनका इम्तिहान लेने का निर्णय किया. इसके बाद अल्लाह ने उनके सपने में जाकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने के लिए कहा. ऐसे में हजरत इब्राहीम ने तय किया कि उनका बेटा इस्माइल ही उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय है, जिसने कुछ समय पहले ही उनके घर में जन्म लिया था. इसके बाद हजरत इब्राहीम ने अल्लाह के लिए अपने बेटे को कुर्बान करने की ठान लिया.