Who will take care of the cattle roaming on the roads?
एक समय ऐसा भी था जब घर का पालतु मवेशी घर नहीं पहुंच जाता तो घर में खाना पीना हराम हो जाता और उसकी खोजबीन की जाती थी उसके लिये थाने में भी रिपोर्ट हुआ करता था और पुलिस प्रशासन भी इसके लिये काम करती थी। आज पुसौर ही नहीं, प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में आवारा मवेशियों होने की खबर है जबकि देश में गोवंश की रक्षा के लिये तरह तरह के संगठन काम कर रहे हैं और स्वयं सरकार भी इनकी रक्षा के लिये कई तरह के घोषणायें करते रहे हैं। पहले ऐसे आवारा मवेशियों को या तो उनके मालिकों के पास पहुंचाया जाता था या फिर उन्हें कांजी हाउस में डाला जाता था। सोशल मिडिया में गाय का दर्द इस तरह बताया है कि ‘‘ गाय अपने दुध अपने बच्चे बछड़े को न पिला कर मनुष्यों के लिये छोड़ देती है, हल चलाने के लिये बैल देती है, खेत उर्वर बनाने के लिये गोबर देती है यहां तक कि सनातनियों के प्रत्येक पूजा पाठ में पंचगव्य के रूप में गाय का घी गोबर, मुत्र, दुध और दही उपयोग में लाया जाता है इसके बावजूद भी मुझे आज छत क्यों नहीं मिलता। मैं आवारा क्यों घुम रहीं हूं। किसानों को यदि मवेशी पालने के लिये एक निर्धारित राशि जारी कर दे ंतो शायद रोड में घुमते हुये ये नहीं मिलेंगे और ज्यादातर सडक़ दुर्घटनायें भी जो इनके चलते होते थे उसमें भी विराम लग जायेंगे।
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