पक्के भवनों में संचालित हो आदिवासी बच्चों का आवासीय विद्यालय
बीजापुर@रामचन्द्रम एरोला – पोटाकेबिन में फैली अव्यवस्था और प्रबंधन की लापरवाही से मासूम बच्ची की जान गई। गुरुवार को सर्व आदिवासी समाज के वरिष्ठ सदस्य तेलम बोरैया के नेतृत्व में दस सदस्यीय दल आवापल्ली पहुंच कर मौके का जायजा लिया।
सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष जग्गू राम तेलामी ने बताया कि 20 साल पुराने बांस के बने आवासीय विद्यालय में व्यवस्था के नाम पर कुछ भी नही है। छात्रों और अनुदेशकों से चर्चा में पता चला कि यहां 350 बच्चों की दर्ज संख्या है जिनमे बुधवार की शाम भोजन से पूर्व की गई गिनती में 303 छात्राएं मौजूद थे। मृत मासूम लिप्सा उईका साढ़े चार वर्ष अपनी बुआ जोकि कक्षा 9 वीं की छात्रा है के यहां आई थी। वह अपना यहां एडमिशन करवाना चाहती थी पर उम्र कम होने के चलते उसका यहां प्रवेश नही मिल सका था। सोमवार को उसके पिता आयतू उइका लेने आए थे पर वह जाने से मना कर दी थी। आयतु उईका गुरुवार बाजार के दिन उसे लेने आने वाले थे पर बुधवार रात की घटना में उसकी मौत हो गई। जग्गूराम तेलामी ने बताया कि जांच दल ने पाया की छात्रवास अधीक्षिका आग लगने की घटना के दौरान पोटा केबिन में मौजूद नहीं थी। कमरों में एक बिस्तर दो से तीन छात्राएं सोया करती थी। कमरे में रात में रहने वाली चौकीदार भी वहां मौजूद नही थे। ग्यारह नंबर कमरे की छात्रा की रात को अचानक नींद खुलने से उसने सभी को जगाया था और सभी को सूचना दी गई। कमरा नंबर दस में जिसमें बच्ची की जलने से मौत हुई उसमे एक दरवाजे में बाहर से ताला लगा हुआ था। जिसका कारण सिटकनी का महीनों से खराब होने की बात अधीक्षिका गीता मोड़ियाम ने स्वीकार किया। घटना पर वहां के कर्मचारियों, छात्राओं और अधीक्षिका के वक्तव्य अलग अलग हैं। जग्गूराम तेलामी ने कहा कि आदिवासी बच्चों की शिक्षा के नाम पर सरकार और शिक्षा विभाग के अधिकारी चांदी काट रहे हैं। पोटाकेबिन आवासीय विद्यालयों में न गुणवत्ता पूर्ण आवासीय व्यवस्था है और न ही गुणवत्ता पूर्ण शैक्षणिक व्यवस्था है। 2009 के बाद से यहां के रहवासी छात्रों के लिए विषय के विद्वान शिक्षकों की न पदस्थापना की गई और न ही पद स्वीकृत किए गए हैं। प्रबंधकीय व्यवस्था के लिए प्रतिनियुक्ति पर शिक्षकों को और अध्यापन के लिए गैर प्रशिक्षित अनुदेशक की अस्थाई भर्ती की गई है। हमारी मांग है की आवापल्ली घटना की न्यायिक जांच हो और जिम्मेदारों पर अपराधिक मुकदमा दर्ज हो। मृत मासूम के परिजनों को 50 लाख मुआवजा और परिवार के एक को सरकारी नौकरी दिया जाए। आदिवासी क्षेत्र के सभी आवासीय विद्यालय पक्के मकानों में शिफ्ट किया जाए। पोटा केबिन स्कूलों में प्रशिक्षित और विषय विद्वान शिक्षकों की भर्ती की जाए। आवासीय विद्यालयों की भोजन और शैक्षणिक गुणवत्ता की जांच के लिए समय समय पर स्वतंत्र टीम से जांच कराई जाए जिसमे उसी विद्यालय के छात्रों के पालक भी शामिल हों। जग्गूराम तेलामी ने कहा कि हमारे प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री है और यह हमारे लिए गर्व की बात पर आदिवासी उत्पीड़न की शिकायतें पुलिस थानों में दर्ज नहीं हो रही हैं। ताजा मामला बीजापुर का है यहां के बस स्टैंड में गुरुवार को एरमनार निवासी आदिवासी युवक महेश कोरसा को बीजापुर के कुछ प्रभावशाली लोगों रमेश गुज्जा, सुधीर गुज्जा और मनीष सिंह ने बस के पार्सल को लेकर मारपीट और जाति सूचक गालियां दी। जिसके बाद उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने की कोशिश की पर उनकी रिपोर्ट नही लिखी गई। कुछ मीडिया कर्मियों के दबाव में पीड़ितों का आवेदन लिया गया पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जबकि मामला आदिवासी प्रताड़ना से जुड़ा हुआ है अब तक आरोपियों की गिरफ्तारी हो जानी चाहिए थी।
बीते कुछ दिनों से आदिवासी समाज प्रमुखों, अधिकारी कर्मचारियों और जन प्रतिनिधियों की छवि बिगाड़ने और उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का काम किया जा रहा है जिसे लेकर आदिवासी समाज उद्वेलित है। इस पर तत्काल रोक नही लगने की स्थिति में समाज हर मोर्चे पर इसका कड़ा जवाब देगा। जरूरत पड़ी तो सड़क से संसद तक की लड़ाई के लिए बाध्य होगा। इस दौरान सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष जग्गू राम तेलामी, कमलेश पैंकरा, सालिक नागवंशी, अल्वा मदनैया, रजत कुजूर, सीताराम मांझी, सुकूल साय तेलाम, रामलाल कर्मा, सोमारु बरसा, कुंवर सिंह मज्जी सहित अन्य सामाजिक पदाधिकारी मौजूद थे।