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UP News: मृत मछलियों से मचा हड़कंप, गोरखपुर के रामगढ़ताल में, 40 लाख से अधिक रुपये के नुकसान का दावा

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UP News: Dead fish cause panic in Ramgarhtal of Gorakhpur, claim of loss of more than Rs 40 lakh

गोरखपुर। रामगढ़ताल में शुक्रवार को बड़ी संख्या में मरी हुई मछलियां उतराती हुई मिली। इनमें ज्यादातर मछलियां आधे किग्रा से अधिक की है। ठेका पानी वाली समिति 40 लाख से अधिक के नुकसान का दावा कर रही है। मछलियों के मरने की वजह साफ नहीं हो पाई है।

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समिति और विशेषज्ञों के अनुसार आक्सीजन की कमी और तापमान में उतार-चढ़ाव मछलियों के मरने की वजह हो सकती है। इसके पहले भी ताल में मछलियां मर चुकी हैं। यद्यपि, इतनी बड़ी संख्या में मछलियों के मरने की घटना लंबे समय बाद हुई है। फिलहाल जीडीए, समिति की मदद से मछलियों को ताल से निकालने में जुट गया है।
रामगढ़ताल को सजाने व संवारने की मंशा पर पानी फेरती यह तस्वीर पैड़लेगंज छोर की है। ताल में उतराती मरी मछलियां किनारों पर जमा प्लास्टिक कचरे में फंसी दिख रही हैं। जीवन के लिए खतरा सिद्ध होता प्लास्टिक कचरा यहां स्वयं प्लास्टिक मुक्त शहर के अभियान को आईना दिखा रहा है।

गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने तकरीबन 20 करोड़ रुपये से अधिक पर 10 साल तक मछली मारने का ठेका दिया है। ठेका लेने वाली मत्स्यजीवी सहकारी समिति लिमिटेड तारामंडल रोड मनहट, के पदाधिकारियों के मुताबिक उन्हें भी शुक्रवार की सुबह ही मछलियों के मरने की जानकारी हुई।

उनका दावा है कि गुरुवार को हुई बारिश के बाद तेज धूप निकलने से ताल के पानी में घुलित आक्सीजन की मात्रा कम हो गई जिससे मछलियां मर गईं। उन्होंने कहा कि पहले भी कुछ मछलियों की ऐसे मौत हो चुकी है। समिति के अध्यक्ष मदन लाल व सचिव बलदेव सिंह ने दावा किया कि मछलियों की मौत से 40-50 लाख रुपए की क्षति उठानी पड़ी है।
फिलहाल मछलियों को ताल से मछुआरों ने एकत्र कर बाहर निकालना शुरु कर दिया है। देर शाम तक काफी मछलियों को निकाला जा चुका था। शनिवार की सुबह तक सभी मरी हुईं मछलियों को निकाल लिया जाएगा ताकि ताल में उनके सड़ने से बदबू न फैले। प्राधिकरण उपाध्यक्ष आनंद वर्द्धन ने बताया कि ताल में मछलियों के मौत की जानकारी मिली है, लेकिन मछलियों के मौत की वजह नहीं स्पष्ट हो सकी है।

करीब 40 से 50 लाख रुपये का हुआ नुकसान

मत्स्य पालन समिति से जुड़े नंदकिशोर साहनी ने बताया कि पैडलेगंज से नौकायन के बीच ताल के किनारे मृत पड़ी मछलियों को पांच नाव लगाकर निकलवाया जा रहा है। करीब 40 से 50 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। अफसरों को पहले ही ताल में पानी कम होने की बात बताई गई थी, लेकिन कोई हमारी बात सुन नहीं रहा था। अब जब नुकसान हो गया, तब अफसर नई-नई कहानी सुना रहे हैं।

अप्रैल में रामगढ़ताल से उठने लगा था बदबू

रामगढ़ताल में किनारे की तरफ काई जमने से अप्रैल में ही बदबू उठने लगा था। इसकी जानकारी होने पर जीडीए ने जलकुंभी की सफाई कराई, जिसके बाद बदबू उठना बंद हो गया। हालांकि स्थानीय नागरिकों का कहना है कि ताल की सतह की सफाई नहीं कराई गई। शुक्रवार को ताल में मछली मरने की जानकारी पर सफाई कार्य शुरू कराया गया। ताल की सतह पर भी प्लास्टिक की बोतल व गंदगी दिख रही थी।

तापमान अधिक होने से वर्ष 2014-15 में भी मरी थीं मछलियां

डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार द्विवेदी ने बताया कि वर्ष 2014-15 में भी रामगढ़ताल में मछलियां मरी थीं। उस समय भी ताल का तापमान अधिक हो गया था। जिस तरह इंसानों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है, उसी तरह जलीय जीवों को जीवित रहने के लिए पानी में घुली ऑक्सीजन की जरूरत होती है। किसी जलाशय में ऑक्सीजन की कमी का मुख्य कारण फास्फोरस और नाइट्रोजन के उच्च स्तरों की ओर से संचालित अत्यधिक शैवाल और फाइटोप्लांकटन वृद्धि है। जिस भी ताल में जलीय जीव रहते हैं, उनका तापमान 21 से 22 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। निचली सतह का तापमान बढ़ने से ऑक्सीजन लेवल घटने लगता है।

डी श्रेणी में है रामगढ़ताल की जल गुणवत्ता

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से मई में रामगढ़ताल की जल गुणवत्ता को मापा गया था। इसका विवरण बोर्ड की वेबसाइट पर भी अपलोड है। इसमें रामगढ़ताल में डीओ (घुलित ऑक्सीजन) 7.9, बीओडी 4.20 और टोटल कोलीफाॅर्म 29000 और फीकॅल कोलीफार्म 21000 पाया गया। इस वजह से ताल के पानी को डी श्रेणी में रखा गया है। डी श्रेणी का पानी दूषित माना जाता है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नहीं ली सुधि

रामगढ़ताल के पानी की गुणवत्ता खराब है, इसके बावजूद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से ध्यान नहीं दिया गया। अप्रैल में यहां क्षेत्रीय अधिकारी रहे अनिल शर्मा अब सेवानिवृत्त हो गए हैं। कुनराघाट में स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी का चार्ज आजगमढ़ के क्षेत्रीय अधिकारी के पास अतिरिक्त प्रभार के तौर पर है। वह पिछले सप्ताह गोरखपुर दफ्तर पहुंच कर कार्यभार ग्रहण कर चले गए। तबसे वह गोरखपुर नहीं आए। महीने भर से प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित सारे कार्य ठप पड़े हैं।

वर्जनरामगढ़ताल में मछलियां क्यों मरी हैं, इसकी जांच कराई जा रही है। जलस्तर घटने से मछलियों के मौत का आरोप निराधार है। दो दिन पहले पुराने फाटक की जगह नया लगाने का काम शुरू किया गया है। जितने जल की निकासी हो रही है, गोड़धोइया और हाल में हुई बारिश से उसकी भरपाई हो गई है।

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