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जनरल मनोज पांडे हुए सेवानिवृत्त जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने नए सेना प्रमुख का पदभार संभाला

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General Manoj Pandey retired General Upendra Dwivedi took over as the new Army Chief

नई दिल्ली। भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज पांडे को उनके कार्यकाल के अंतिम दिन औपचारिक विदाई दी गई। जनरल पांडे ने 26 महीने का शानदार कार्यकाल पूरा किया और दिल्ली में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
मूलतः 30 मई को सेवानिवृत्त होने वाले जनरल पांडे की सेवा को सरकार ने एक अतिरिक्त महीने के लिए बढ़ा दिया था, जिससे वह 30 जून तक सेवा कर सकेंगे। सरकारी सूत्रों के अनुसार, उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद होनी थी, जो 4 जून को निर्धारित थे।

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जनरल उपेंद्र द्विवेदी बने नए सेनाध्यक्ष

लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी को नया सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया है और वह आज अपना कार्यभार संभालेंगे।
रक्षा मंत्रालय ने पहले एक बयान में कहा, मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने 26 मई, 2024 को सेना नियम 1954 के नियम 16 ​​ए (4) के तहत, सेनाध्यक्ष (सीओएएस) जनरल मनोज सी पांडे की सेवा में उनकी सामान्य सेवानिवृत्ति आयु (31 मई, 2024) से एक महीने की अवधि के लिए विस्तार को मंजूरी दी, जो 30 जून, 2024 तक है।
सेना प्रमुख के रूप में जनरल पांडे का कार्यकाल राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। जनरल पांडे को 30 अप्रैल, 2022 को सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था।
उन्हें दिसंबर 1982 में कोर ऑफ इंजीनियर्स (बॉम्बे सैपर्स) में कमीशन मिला था। सीओएएस का पदभार संभालने से पहले उन्होंने सेना के उप प्रमुख का पद संभाला था। जनरल पांडे ने 01 जून 2021 को पूर्वी कमान की कमान भी संभाली।

30वें सेना प्रमुख होंगे जनरल द्विवेदी

इस नियुक्ति से पहले वे अंडमान और निकोबार कमांड CINCAN के कमांडर-इन-चीफ थे।
लेफ्टिनेंट जनरल द्विवेदी 30वें सेना प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालेंगे। इससे पहले वे उप सेना प्रमुख, उत्तरी सेना कमांडर, डीजी इन्फैंट्री और सेना में कई अन्य कमांड नियुक्तियों के पदों पर देश की सेवा कर चुके हैं।
अपने 39 वर्षों से अधिक के शानदार करियर के दौरान, उन्होंने देश के कोने-कोने में चुनौतीपूर्ण परिचालन वातावरण में कमांड नियुक्तियाँ संभाली हैं। उन्होंने कश्मीर घाटी के साथ-साथ राजस्थान में भी अपनी यूनिट की कमान संभाली। वे उत्तर पूर्व में आतंकवाद विरोधी गहन माहौल में असम राइफल्स के सेक्टर कमांडर और महानिरीक्षक रह चुके हैं।

द्विवेदी के बारे में कुछ खास बातें

लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी का जन्म 1 जुलाई 1964 को हुआ था। उन्हें 15 दिसंबर, 1984 को भारतीय सेना की इन्फैंट्री जम्मू और कश्मीर राइफल्स में कमीशन मिला था। उन्हें करीब 40 साल का अनुभव है। अपनी लंबी और विशिष्ट सेवा के दौरान उन्होंने कई कमांड, स्टाफ और इंस्ट्रक्शनल में काम किया है। लेफ्टिनेंट उपेंद्र द्विवेदी की कमांड नियुक्तियों में रेजिमेंट 18 जम्मू और कश्मीर राइफल्स, ब्रिगेड 26 सेक्टर असम राइफल्स, आईजी, असम राइफल्स (पूर्व) और 9 कोर की कमान शामिल हैं।

कई अहम जिम्मेदारियां संभाली

लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने सेना के उप प्रमुख के रूप में नियुक्त होने से पहले 2022-2024 तक महानिदेशक इन्फैंट्री और जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ (मुख्यालय उत्तरी कमान) सहित कई अहम जिम्मेदारियां संभाली हैं। जनरल द्विवेदी ने 13 लाख कर्मियों वाली सेना का प्रभार ऐसे समय संभाला है, जब भारत चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) सहित विभिन्न सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है।
सेना प्रमुख के रूप में उन्हें थिएटर कमांड शुरू करने की सरकार की महत्वाकांक्षी योजना पर नौसेना और भारतीय वायु सेना के साथ समन्वय करना होगा।

यहां से हुई पढ़ाई

लेफ्टिनेंट द्विवेदी की पढ़ाई सैनिक स्कूल रीवा, नेशनल डिफेंस कॉलेज और यूएस आर्मी वॉर कॉलेज से हुई है। उन्होंने डीएसएससी वेलिंगटन और आर्मी वॉर कॉलेज (महू) से भी कोर्स किया है। इसके अलावा उन्हें यूएसएडब्ल्यूसी, कार्लिस्ले, अमेरिका में प्रतिष्ठित एनडीसी समकक्ष पाठ्यक्रम में ‘विशिष्ट फेलो’ से सम्मानित किया गया। उनके पास रक्षा और प्रबंधन अध्ययन में एम फिल और सामरिक अध्ययन और सैन्य विज्ञान में दो मास्टर डिग्री हैं।

पीवीएसएम, एवीएसएम समेत कई सम्मान मिले

लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी परम विशिष्ट सेवा पदक (पीवीएसएम), अति विशिष्ट सेवा पदक (एवीएसएम) और तीन जीओसी-इन-सी प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया है।

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अधिकारियों ने बताया कि उत्तरी सैन्य कमांडर के तौर पर जनरल द्विवेदी ने उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर सतत अभियानों की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने के लिए रणनीतिक मार्गदर्शन दिया। उन्होंने बताया कि द्विवेदी सीमा मुद्दे को हल करने के लिए चीन के साथ चल रही बातचीत में सक्रिय रूप से शामिल थे।
उनका भारतीय सेना की सबसे बड़ी सेना कमान के आधुनिकीकरण और लैस करने में भी योगदान था, जहां उन्होंने आत्मनिर्भर भारत के हिस्से के रूप में स्वदेशी उपकरणों को शामिल करने का संचालन किया।

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